चुनावी बिसात में उभरा राजनीतिक परिदृश्य

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  • यश गोयल
    दिसम्बर में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव हेतु पिछले दिनों भाजपा के लिये सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, फिर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने जो रणभेरी बजायी थी, वह भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन और अस्थि कलश यात्रा के कारण सुस्त पड़ गयी। मोदी और शाह के बाद आये कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जो दमदार रोड शो जयपुर में किया, उससे भाजपा की नींद उड़ी हुई है। सत्ता पाने के लिये पक्ष और विपक्षी दलों के अलावा तीसरा मोर्चा बनाने के लिये आप, लोकतांत्रिक जनता दल, भारत वाहिनी पार्टी, बीएसपी, राजपा, लेफ्ट पार्टी अपने-अपने घर संभाल कर एकजुटता के प्रयासों में लग गये हैं।
    मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की मर्जी के बाद आरएसएस के मदनलाल सैनी को नये प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कमान सौंपी, तब मोदी-शाह ने राज्य में चुनावी बिगुल बजाया। संघ परिवार और उसके अग्रिम संगठनों ने राजे की ‘गौरव यात्राÓ का उदयपुर संभाग में जो माहौल बनाकर ‘विजयी यात्राÓ का रूप राजे को दिया, उसे कानूनी झटका तब लगा जब कांग्रेस ने पीडब्ल्यूडी का एक सरकारी पत्र सार्वजनिक कर आरोप मढ़ दिया कि मुख्यमंत्री राजकीय कोष का खुला दुरुपयोग कर रही हैं। इस पर दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से तुंरत हिसाब मांग लिया। पहले चरण की यात्रा को पार्टी की बताते हुए भाजपा ने हाईकोर्ट को जब ये बताया कि उसने रु 1.10 करोड़ खर्च किये हैं तो राजनीतिक दलों और जनता में खलबली मच गयी। मुख्यमंत्री को दूसरे दौर की गौरव यात्रा 16 अगस्त से शुरू करने से पहले ही गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के संरक्षक किरोड़ी सिंह बैंसला ने अपनी एक दशक पुरानी मांगों पर चेतावनी दे दी कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गयीं तो वे यात्रा में बाधा पहुंचायेंगे। इस बार चेतावनी की आड़ में वो अपने बेटे को करौली विस से टिकट दिलवाने में लगे हैं। इसलिये उन्होंने समिति के कई फॉउंडर पदाधिकारियों को निलम्बित कर अपनी लॉयल्टी दर्शायी है। इसी दौरान अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हुआ तो राजे ने समय की नज़ाकत का फायदा उठाकर अपनी दूसरे दौर की यात्रा रद्द कर दी ताकि गुर्जरों का तनाव न झेलना पड़े। आनन-फानन में सरकार ने कानूनी अड़चन को देखते हुए पीडब्ल्यूडी का आदेश तो वापस ले लिया मगर सरकारी सुविधा का लाभ लेने के लिये गौरव यात्रा का नाम बदल कर ‘डेवलपमेंटल एग्जीबिशन एंड वीआईपी विजिट्स कर दिया और राजे की यात्रा के प्रयोजनार्थ रु 3.67 करोड़ के ई-टेंडर जारी कर दिये। हाईकोर्ट की डबल बैंच ने जनहित याचिकाकर्ता के इस प्रतिवाद को भी स्वीकार कर सरकार और भाजपा को फिर कानूनी पेचीदगियों में उलझा दिया है। दूसरी तरफ भाजपा ‘अटल यादों और उनके ‘राजधर्म को सजीव बनाये रखने के लिये अस्थि कलश यात्रा में जुटी हुई है। जोधपुर संभाग में दूसरे दौर की यात्रा जैसलमेर से अगस्त 24 को शुरू हो तो गई है पर इस संभाग में कांग्रेसी नेता अशोक गहलोत का गृह जिला भी है तथा राजपूत, माली, बिश्नोइयों और ओबीसी जाति के दावेदारों की चुनौती और अंदरूनी मनमुटाव भी सत्ताधारी दल के लिये कम नहीं है। राज्य में एक दर्जन से अधिक विस क्षेत्रों पर भाजपा की स्थिति अप्रिय है जहां विधायक ही एक-दूसरे का विरोध कर रहे हैं। राज्य और केंद्रीय मंत्रियों के गुट सक्रिय हैं और उनके कार्यकर्ताओं के अलग-अलग धड़े हैं। राहुल गांधी ने भले ही जयपुर रैली में गहलोत और सचिन पायलट (प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष) के हाथ मिलवा कर ये संदेश देना चाहा कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री चेहरे पर कोई गुटबाजी नहीं है मगर सत्ताधारी बीजेपी बार-बार जनता से कह रही है कि कांग्रेस में कोई एक चेहरा सीएम उम्मीदवार का नहीं है। राजनीतिक मतभेद कांग्रेस हाईकमान तब पहुंचे जब दो बार मुख्यमंत्री रहे गहलोत ने सार्वजनिक रूप से यह अभिव्यक्त किया, ‘वह दिल्ली या कहीं रहें, लेकिन ताउम्र राजस्थान की जनता की सेवा करते रहेंगे। खलक (जनता) की आवाज खुदा की आवाज होती है। इस पर प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने एतराज किया तो गहलोत ने इस सबके लिये सफाई दी और ठीकरा प्रेस पर फोड़ दिया।ओबीसी की राजनीति कर रहे गहलोत गुट भले ही पार्टी की अगस्त-सितम्बर में हो रही संकल्प रैली में शिरकत कर एकजुटता दिखा रहे हैं मगर उनके समर्थक गाहे-बगाहे गहलोत का चेहरा सीएम के लिये प्रोजेक्ट कर देते हैं।दूसरी तरफ कांग्रेस कार्यसमिति से अलग हुए दो ब्राह्मण दिग्गज नेता सीपी जोशी और मोहन प्रकाश को राज्य के चुनाव में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिले, ये पायलट भी चाहते हैं ताकि ब्राह्मण वोट बैंक का ‘रीएलाइनमेंट हो। चुनावी बिसात बिछ रही है, मोहरे खड़े होंगे, शह और मात किसके पक्ष में होकर किस दल को राज्य में सत्तारूढ़ करेगी, ये मतदाता की अंगुली का रहस्य है।

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