दूसरे का दर्द महसूस करना ही इंसानियत है: मौलाना

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Raebareli News: दूसरे का दर्द महसूस करना ही इंसानियत है: मौलाना

रायबरेली। एदारा-ए-शरैय्या खिन्नीतल्ला के तत्वाधान में जश्न आमदे मुस्तफा के 11 दिवसीय जलसे का तीसरा जलसा बाद नमाज इशा अली मियां कालोनी में बड़े ही शानो, शौकत के साथ मौलाना अरबीउल अशरफ नाजिमे आला एदारा-ए-शरैय्या की अध्यक्ष्ता में स पन्न हुआ।  जलसे की शुरूआत कुरआन पाक की तिलावत से हुई।
जलसे के मुख्य वक्ता मौलाना डाॅ. जाकिर रजा मीनाई लखनऊ ने बताया कि माहे बारह रबीउल अव्वल की 12 तारीख को अरब की धरती शहर मक्का में अल्लाह ने हमारे नबी सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम को पैदा फरमाया। मेरे नबी की पैदाइश से पहले पूरी दुनिया में खास तौर से अरब में जुल्म सितम, जात-पात का भेदभाव बुरे रस्म रिवाजों, जिहालत की तारीकी का हर तरफ बोलबाला था। रसूल ने अपनी 63 वर्ष की जाहिरी जिन्दगी में समाज की इन बुराईयों का समापन कर दिया। अरब के वे लोग जो बात-बात पर तलवार निकाल लिया करते थे, लेकिन नबी की पैदाइश के बाद अगर एक इंसान के पैर में कांटा भी चुभता तो दूसरा इंसान अपने सीने में दर्द महूसस करके इंसानियत की मिसाल पेश करता हुआ नजर आता है। अरब के वे लोग जो अपनी उच्च जाति होने पर घमण्ड करते थे। नबी सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम की पैदाइश के बाद फारस के सलमान, रोम के सोहैब व हब्शा के बिलाल को अपने सगे भाईयों जैसा समानता का दर्जा देते हुए नजर आते हैं। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम ने लोगों को हर मामले में रहमदिली से पेश आने का हुक्म दिया है। यदि इतिहास का अध्ययन करें तो नबी की पैदाइश से पहले इंसान तो थे, लेकिन इंसानियत नहीं थी। ये एहसान है हमारे नबी का है कि हम लोगों को इंसानियत के साथ जीने का ढंग सिखाया। सलातो सलाम व मौलाना अरबीउल अशरफ की दुआ पर जलसे का समापन हुआ। जलसे में शेखू, मौलाना मंसूर अहमद, फुरकान, इरफान, मो. रफीक कुरैशी, मो. सलीम, मो. अतहर, मो. इरशाद, मो. सगीर, मजीद अहमद इत्यादि लोगों का विशेष योगदान रहा।

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