नशे के सुधारवादी नजरिये का विकल्प

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  • मधुरेन्द्र सिन्हा
    ड्रग, नशा, नशीली दवाओं का जाल, भारत के युवा वर्ग की नई समस्या है। पूरे देश में लाखों नौजवान-नवयुवतियां नशे के जाल में फंसकर अपना भविष्य खराब कर रहे हैं। पंजाब में तो यह समस्या इतनी बड़ी हो चुकी है कि राज्य सरकार इसे काबू में करने में विफल होती प्रतीत हो रही है। इससे निपटने के लिए कड़े कानून बना दिए गए हैं और हजारों लोग सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गए हैं। देश के अन्य हिस्सों में यह समस्या कम तो है लेकिन इससे पूरी तरह छुटकारा नहीं पाया जा सका है। धनाढ्य परिवारों में तो यह समस्या और भी ज्यादा घर कर गई है। नशीली दवाओं के धंधे में मोटी कमाई है और इसमें भारतीयों के अलावा अन्य देशों के लोग भी शामिल हो गए हैं। नतीजा है कि ये नशीली दवाएं आसानी से उपलब्ध हैं और इनका सेवन बढ़ता ही जा रहा है। पंजाब में यह धंधा खूब फला-फूला। एक राजनीतिक दल के कुछ नेताओं पर आरोप भी लगा कि वे इसे बढ़ावा दे रहे हैं। वहां हालत ऐसी रही है कि जेलों में बंद कैदियों में 47 प्रतिशत यानी लगभग आधी आबादी इसी अपराध में फंसे लोगों की है। इससे राज्य में इस समस्या की गंभीरता का पता चलता है। राज्य सरकारों ने इस महासमस्या को जड़ से उखाडऩे की बजाय कानून बनाए। ये कानून कड़े होते चले गए, जिससे नशीली दवाओं के धंधे में मुनाफा बढ़ता चला गया। ज्यादा से ज्यादा अपराधी वृत्ति के लोग इसमें शामिल होते चले गए। पड़ोसी देश पाकिस्तान ने इसका भरपूर फायदा उठाया और बड़े पैमाने पर ड्रग्स भारत भेजना शुरू किया। भारत में नशीली दवाओं का व्यापार करने वालों के खिलाफ कानून एनडीपीएस एक्ट 1985 में बनाया था। इसमें 1989, 2001 और फिर 2014 में बदलाव किए गए। इस कानून में नशीली दवाओं के उत्पादन से लेकर उन्हें रखने और उनका सेवन करने तक पर दंड का प्रावधान है। सरकार का मानना है कि कठोर कानूनों से नशीली दवाओं के कारोबार और उनके सेवन पर रोक लगेगी। हालांकि यह कानून सऊदी अरब, ईरान और मलेशिया जैसे देशों के कानून की तरह नहीं है जहां महज इन्हें रखने पर सजा-ए-मौत का प्रावधान है। लेकिन भारत में नशीली दवाओं के खिलाफ कड़े कानून होते हुए भी इनके कारोबार में इज़ाफा हुआ है और हर दिन देश के किसी न किसी कोने से नशीली दवा कारोबारियों के पकड़े जाने की खबरें आती रहती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कम से कम 40 लाख लोग नशीली दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। इतना ही नहीं, नशीली दवाओं के इस्तेमाल करने वालों के खुदकुशी के मामले भी हमेशा सामने आते रहते हैं। इनके कारण लाखों घरों में अशांति फैली हुई है। पंजाब से जो आंकड़े आए हैं, वे तो बेहद चौंकाने वाले हैं। पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि वहां 2014 में हर महीने औसतन 60 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी गई है। ज़ाहिर है कि जब इतनी बड़ी मात्रा में नशीली दवाएं पकड़ी जा रही हैं तो वहां उनकी कितनी ज्यादा सप्लाई हो रही होगी। सरकार ने इन्हें रोकने के लिए सख्त कानून का सहारा लिया है। राज्य सरकार ने तो नशीली दवाओं के इस्तेमाल को रोकने के लिए पंजाब को विशेष दर्जा देने की मांग भी की है। लेकिन यहां पर यह सवाल उठता है कि क्या कानून और सख्त कानूनों से इस समस्या से निजात पाई जा सकती है। अगर हम नशीली दवाओं के सबसे बड़े उपभोक्ता देश अमेरिका का उदाहरण लें जहां यह समस्या सबसे विकट है तो हमें पता चलेगा कि वहां की सरकार ने अपने कुछ कानूनों को उदार बनाया है। वहां सबसे बड़ी समस्या थी कि लोग बड़े पैमाने पर मारिजुआना का इस्तेमाल करते थे और उन्हें पुलिस पकड़ती थी। हर महीने हजारों लोग गिरफ्तार कर लिये जाते थे और जेलों में ठूंस दिए जाते थे। लेकिन वाशिंगटन सहित कुछ राज्यों ने खुद इसके इस्तेमाल की अनुमति दे दी। हालांकि अमेरिकी सरकार के कानून में कोई बदलाव नहीं हुआ। 2016 आते-आते ज्यादातर राज्यों ने इसे वैध घोषित कर दिया। इसका असर यह हुआ कि इसका सेवन करने वालों पर कानूनी कार्रवाई बंद हो गई और हजारों लोग जेल जाने से बच गए। सरकार का सिरदर्द भी खत्म हुआ और इसकी तस्करी खत्म हो गई। एक संगठित अपराध खत्म हो गया। इसे वहां एक सुधारवादी कदम माना जाता है क्योंकि अब जाने-अनजाने में इसका इस्तेमाल करने वाला अपराधी नहीं बन जाता। यह बात भारत में भी समझनी होगी कि कड़े कानूनों से इस समस्या से छुटकारा पाना आसान नहीं है। बेहतर होगा कि नशीली दवाओं का सेवन करने वालों के पुनर्वास के लिए व्यापक कदम उठाए जाएं। इस दिशा में पंजाब ने भी कदम उठाया है लेकिन सबसे बड़ा कदम छोटे से राज्य सिक्किम ने उठाया है। वहां की सरकार ने 2006 में सिक्किम एंटी ड्रग्स एक्ट बनाया था, जिसकी खूब तारीफ हुई थी और कहा गया था कि इस कड़े कानून से नशीली दवाओं के सेवन पर रोक लगेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और नशे के कारोबारियों की बजाय सेवन करने वाले ही इसकी चपेट में आने लगे।
    लेकिन अब मुख्यमंत्री पवन चामलिंग ने इसमें बदलाव करने की ठानी है और कहा है कि नशेबाजी को एक बीमारी समझा जाएगा। नशे का सेवन करने वालों को अपराधी नहीं माना जाएगा और उनके साथ मानवीय सलूक किया जाएगा। नशीली दवाओं का कारोबार करने वालों पर सरकार निशाना साधेगी और सेवन करने वालों का इलाज कराएगी। इसके लिए चामलिंग जनता में जागरूकता लाना चाहते हैं ताकि नशीली दवाओं का सेवन करने वालों को इस रास्ते से दूर किया जा सके। सच तो यह है कि नशीली दवाओं के जाल में फंसे नवयुवकों को सजा देने की बजाय उनकी यह लत छुड़वाने की कोशिश की जाए। कानून तो हो लेकिन इसका कारोबार करने वालों के खिलाफ, न कि सेवन करने वालों के खिलाफ। कानून का रास्ता बंद दीवारों तक ही जाता है जबकि सुधार और प्यार इस महासमस्या की जड़ें खोद सकते हैं।
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