- सुप्रीम कोर्ट के फैसले को केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए नए एससी-एसटी अत्याचार निवारण (संशोधन) कानून 2018 की भी कोर्ट करेगा समीक्षा
नई दिल्ली (एजेन्सी)। एससी-एसटी कानून पर मचे बवाल के बीच सुप्रीम कोर्ट इस संशोधित कानून का परीक्षण करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर छह हफ्ते में जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि बिना सुनवाई रोक लगाना वाजिब नहीं है। वकील पृथ्वीराज चैहान और प्रिया शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के आदेश को किया जाए लागू। एससी-एसटी संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नए कानून 2018 में नए प्रावधान के लागू होने से फिर दलितों को सताने के मामले में तत्काल गिरफ्तारी होगी और अग्रिम जमानत भी नहीं मिल पाएगी। याचिका में नए कानून को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। एससी-एसटी संशोधन कानून 2018 को लोकसभा और राज्यसभा ने पास कर दिया था और इसे नोटिफाई कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने गत 20 मार्च को दिये गए फैसले में एससी-एसटी कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशा-निर्देश जारी किये थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून में शिकायत मिलने के बाद तुरंत मामला दर्ज नहीं होगा। डीएसपी पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच करके पता लगाएगा कि मामला झूठा या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है। इसके अलावा इस कानून में एफआईआर दर्ज होने के बाद अभियुक्त को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरी ली जाएगी। इतना ही नहीं कोर्ट ने अभियुक्त की अग्रिम जमानत का भी रास्ता खोल दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देशव्यापी विरोध हुआ था, जिसके बाद सरकार ने कानून को पूर्ववत रूप में लाने के लिए एससी-एसटी संशोधन बिल संसद में पेश किया था और दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद संशोधन कानून प्रभावी हो गया। इस संशोधन कानून के जरिये एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून में धारा 18 ए जोड़ी गई है जो कहती है कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है और न ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है। संशोधित कानून में ये भी कहा गया है कि इस कानून के तहत अपराध करने वाले आरोपी को अग्रिम जमानत के प्रावधान (सीआरपीसी धारा 438) का लाभ नहीं मिलेगा यानी अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। संशोधित कानून में साफ कहा गया है कि इस कानून के उल्लंघन पर कानून में दी गई प्रक्रिया का ही पालन होगा और अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। साफ है कि अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बिल्कुल उलट होगा। पूर्व की भांति इस कानून में शिकायत मिलते ही एफआईआर दर्ज होगी। अभियुक्त की गिरफ्तारी होगी और अभियुक्त को अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी यानी जेल जाना होगा। वैसे फैसले के खिलाफ केन्द्र सरकार की पुनर्विचार याचिका अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। पुनर्विचार याचिका पर मुख्य फैसला देने वाली पीठ जस्टिस आदर्श कुमार गोयल व जस्टिस यूयू ललित की पीठ सुनवाई कर रही थी और इस पीठ ने फैसले पर अंतरिम रोक लगाने की सरकार की मांग ठुकरा दी थी। इस बीच जस्टिस गोयल सेवानिवृत हो चुके हैं ऐसे में पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए नई पीठ का गठन होना है। हालांकि नए कानून के बाद इसके मायने रह नहीं गए हैं।