शिवगढ़ (रायबरेली)। क्षेत्र के बैंती कस्बे में आयोजित दिव्य रामकथा के पांचवें दिन कथावाचक पंडित कृष्ण कुमार द्विवेदी मानस मतंग ने अपनी अमृतमयी दिव्य वाणी से गुरु और शिष्य सम्बन्धों का बहुत ही सुंदर वर्णन करते हुए कहा कि ‘लखन हृदय लालसा विषेखी। जाई जनकपुर आयउ देखी। अर्थात गुरु की आज्ञा पाकर मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम छोटे भाई लक्ष्मण के साथ मिथिला नगरी पहुंचे और समूची मिथिला नगरी का भ्रमण किया।
जहां राजकुमारी सीता अपनी सुन्दर सखियों के साथ वाटिका में पूजा के लिए पुष्प तोड़ रही थी। प्रभु श्रीराम को देखकर उनका मुस्करायी। किन्तु प्रभु श्रीराम ने कामदेव को परास्त कर दिया। समूचे जगत के पुरुषों को यह सिखाया कि काम आदि दोषों को वश में कर ले तो संसार में यश और कीर्ति, मान, सम्मान सब कुछ बड़ी आसानी से प्राप्त किया सकता है। श्री मानस मतंग ने अपनी दिव्यमयी अमृतवाणी से अमृत वर्षा करते हुए कहा कि ‘कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा। अर्थात कलयुग में मानव केवल प्रभु का सच्चे मन से स्मरण करके एवं उनकी पावन कथा सुनकर भवसागर को प्राप्त कर सकता है। श्री मानस मतंग ने कहा कि प्रभु श्रीराम के दर्शन के बाद भी यदि मानव की बुद्धि में सुधार न हो तो वह मानव राक्षस से भी ज्यादा पापी है। नित्य रामायण पढक़र उनके दर्शन करें यदि संयम, सदाचार, सरलता न आए तो मान लेना कि मारीच से भी गए गुजरे हो। प्रभु श्रीराम के दर्शन के बाद मामा मारीच की भी सोच बदल गई थी। मानव को तो संसार का सबसे बुद्धिमान और चिंतनशील माना गया है। विदित हो कि सेवानिवृत्त शिक्षिका राजेश्वरी देवी द्वारा विगत वर्षों की भांति मानव कल्याण के उद्देश्य से दिव्य श्रीराम कथा का आयोजन किया जा रहा है। इस मौके पर रामनाथ, बाबूलाल, कौशल किशोर, कमल किशोर, पवन कुमार बाजपेई, मुन्नू मिश्रा, टीनू, राज, हिल सहित श्रोता मौजूद रहे।