सी एम एस का कार्यालय आसमान पर गर्भवती महिलाए अगर मिलना हो तो जान पड़ेगा आसमान पर
रायबरेली। बीजेपी की सरकार मे अगर कहा जाए कि राम राज्य सब हो गया है तो वो गलत ही होगा कहना क्योंकि हम बात करे रायबरेली के स्वास्थ्य विभाग की रायबरेली के जिला अस्पताल के दूसरी शाखा में बने महिला मातृत्व एंव शिशु विभाग जिसमे 100 बेड की सुविधाओं से सुज्जजित करने की बात अधिकारी कर रहे है लेकिन हक्कीत कुछ और ही है जिसमे चौथी मंजिल पर बना है सी एम एस का कार्यालय अगर किसी मरीज को अधिकारी से मिलना हो तो उसे स्वयं चौथी मंजिल तक चल के जाना होगा वहा जो लिफ्ट लगी है वो सफेद हाथी साबित हो रही है , इस भागदौङ भरी जिन्दगी मे क्या आम आदमी बिना सीढी व लिफ्ट के चौथी मंजिल पर चढने को राजी होगा शायद नही न वही आप खुद सोचिए इस चौथी मंजिल पर गर्भवती महिलाए बिना सीढी व लिफ्ट के अपने व होने वाले बच्चे की जान जोखिम मे डालकर चौथी मंजिल पर चढकर महिला सीएमएस से बङी उम्मीद लगाकर मिलने जाती है लेकिन वहाँ भी हर कोई नही मिल सकता अधिकारी से ,हा अगर मिलती है तो सिर्फ निराशा , ताज्जुब की बात है क्या एक महिला सीएमएस होकर गर्भवती महिला की पीड़ा नही समझती है ! ताजा मामला तब सामने आया जब एक पीड़िता चार महिने की गर्भवती महिला दर्द व साॅस फूलने की पीङा लेकर चार मंजिला इमारत पर स्वयं चढकर अपने खुद के हक के लिए 6 महिने की सरकारी छुट्टी लेने गयी जिसको स्वास्थ्य की भाषा मे मेटेल्टी लीव कहते है जब वो महिला सीएमएस के पास गयी तो उसे ये कहकर वापस कर दिया गया कि आप आज की तारीख का ओपीडी पर्चा बनवाकर लाइये फिर उसके बाद 2 बजे नीचे बने कार्यालय पर हमसे मिलिएगा जबकि जिला अस्पताल के 1 रूपये की कीमत के सरकारी पर्चे पर ओपीङी के तारीख से 15दिन मान्य लिखा हुआ होता है जिसमे मरीज 15 दिन तक उसी सरकारी पर्चे से अपना इलाज करवा सकते है जिसके बावजूद महिला सीएमएस ने गर्भवती महिला को आज की तारीख का नये पर्चे बनवाने को कहा ,अब क्या गर्भवती महिला के साथ ऐसा व्यवहार करना उचित था फिलहाल पीड़िता पूरे दिन अस्पताल में इस उम्मीद में चक्कर काटती रही कि उसे छुट्टी अधिकारी दे देंगी लेकिन केवल मिली तो उसको सिर्फ निराशा अब इससे ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी मरीजो की मदद के लिए कितने समर्पित है फिलहाल गर्भवती महिला ने इस मामले में मदद न होने पर उच्च अधिकारियों से शिकायत करने की बात कही है।
अनुज मौर्य रिपोर्ट