मुझे जिस काम के लिए मना किया जाता है, वही करती हूं: प्रियंका चोपड़ा

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बरेली से बॉलिवुड और फिर हॉलिवुड में अपनी जिद्द और काबिलियत से अपना पंजा जमाने वाली जंगली बिल्ली यानी प्रियंका चोपड़ा ने जीवन के शानदार अनुभव का एक साल पूरा कर लिया है। अपने शुरूआती दिनों से ही किसी भी विषय पर बेहद बेबाक बयान देकर अपना हक मांगने वाली प्रियंका हमेशा सुर्खियों में रही हैं। आज प्रियंका का जन्मदिन हैं और इस खास मौके पर हम आपके लिए लाए हैं, प्रियंका चोपड़ा के बेबाक और दमदार जवाबों की बड़ी बातें।
बॉलिवुड की अधिकतर हिरोइन बेवजह के विवादों से बचने के लिए किसी भी विवादित विषय पर अपनी बात कहने से परहेज करती हैं, लेकिन तेज-तर्रार प्रियंका ने कभी भी पूछे गए किसी भी तरह के सवालों का जवाब बड़ी ही समझदारी और बेबाकी से खुलकर दिया है।
कोई यह नहीं कहता कि चलो यार आज मेल सेंट्रिक फिल्म देखने चलते हैं 
महिला प्रधान फिल्मों के संघर्ष पर प्रियंका कहती हैं, जब शुक्रवार को किसी हीरो की मुख्य भूमिका वाली फिल्म रिलीज़ होती है तो कोई यह नहीं कहता कि चलो यार आज मेल सेंट्रिक फिल्म लगी है, देख लेते हैं, लेकिन जब हिरोइन की मुख्य भूमिका वाली फिल्म मैरी कॉम लगती है तो लोग कहते है फीमेल सेंट्रिक फिल्म है। मुझे फिल्मों को लेकर इस तरह की जेंडर वाली बात नहीं पसंद है। मुझे लगता है हम अभिनेत्रियों को सच में जो दर्जा मिलना चाहिए वह नहीं मिलता है। शायद जब हमारी मुख्य भूमिका वाली फिल्में लगातार अच्छा बिजनस करेंगी, तब वह दर्जा हमें मिले।
लोगों ने कहा था फिल्म फैशन में काम करना आत्महत्या करने जैसा है 
मधुर भंडारकर की फिल्म फैशन के लिए बेस्ट ऐक्ट्रेस के राष्ट्रीय अवॉर्ड से सम्मानित प्रियंका ने बताया, जब मैंने मधुर भंडारकर की फिल्म फैशन में काम किया था, तब मैं फिल्मों में 2 से 3 साल पुरानी थी। मधुर बहुत ही कमाल के डायरेक्टर थे। हमारी फिल्म दीपावली के मौके पर गोलमाल के साथ रिलीज़ हुई थी और फिल्म खूब चली थी। जब मैं फैशन साइन कर रही थी, मुझे तमाम लोगों ने कहा था फीमेल ओरीएन्टेट फिल्म चलती नहीं है, ऐसे रोल लोग अपने करियर के अंत में करते हैं। क्यों कर रही हो? यह तो आत्महत्या करने जैसा है, ऐसी तमाम बातें।
मुझे जिस काम के लिए मना किया जाता है, वही काम मैं पहले करती हूं
खुद की चॉइस पर गर्व करते हुए प्रियंका आगे बताती हैं, मैं भी कम नहीं हूं, मुझे जिस काम के लिए मना किया जाता है, वही काम मैं पहले करती हूं। मैंने सात खून माफ, व्हाट्स योर राशि, बर्फी, ऐतराज और जय गंगाजल में भी काम किया है। हां कुछ फिल्में नहीं चली।
विल स्मिथ की फिलॉसफी को फॉलो करती हूं 
शुरू-शुरू में फिल्म इंडस्ट्री के तौर-तरीके न समझने वाली प्रियंका ने इंडस्ट्री को खूब समझा और वह समझ गई कि यहां लंबे रेस में सबसे आगे रहना है तो फिल्म बिजनस और खुद की ब्रैंड वैल्यू को भी समझना होगा। प्रियंका बताती हैं, मैं हॉलिवुड ऐक्टर विल स्मिथ की फिलॉसफी को फॉलो करती हूं। एक फिल्म आप अपने लिए करें और बाकी कमर्शल और ब्लॉकबस्टर फिल्म करो ताकि आप वह एक फिल्म कर सकें जो खुद के लिए हो।
मुझ पर लगाया गया पैसा वापस लाने का माद्दा रखती थी
प्रियंका आगे कहती हैं, मैं शायद मैरी कॉम नहीं कर पाती, शायद संजय लीला भंसाली के पास वह बजट नहीं होता, लेकिन यह पॉसिबल हुआ क्योंकि मैं कमर्शली सक्षम थी। मुझ पर लगाया गया पैसा वापस लाने का माद्दा रखती थी। अगर मैंने कृष, डॉन और अग्निपथ जैसी कमर्शल फिल्म न की होती तो मेरी मार्केट वैल्यू इस तरह की नहीं होती कि कोई एक फिल्म सिर्फ मेरे कंधे पर चल सके। यह फिल्म बिजनस का एक सर्कल है। मैं भाग्यशाली रही हूं कि समय के साथ मेरे पास मजबूत किरदार और फिल्में आई हैं। 
मेरा कॉम्पिटिशन बॉलिवुड के हीरो से ही रहा है, हिरोइन से नहीं
प्रियंका की मानें तो वह शुरू से ही अपना कॉम्पिटिशन बॉलिवुड की हिरोइन के साथ नहीं बल्कि हीरो के साथ रखती थीं। प्रियंका अपनी जानी-पहचानी अदाओं के साथ, होठों पर हल्की मुस्कराहट लिए कहती हैं, अब क्या करूं मुझे लगता है कि मेरा कॉम्पिटिशन बॉलिवुड के हीरो से ही रहा है, हिरोइन से नहीं। मैं फिल्म इंडस्ट्री से नहीं हूं। मुझे कभी भी किसी ने हेल्प नहीं की है। जो मैंने गलतियां की हैं वह भी मेरी अपनी है और जो मैंने सफलता पाई है, वह भी मेरी अपनी है। गलतियां होती हैं, मुझसे भी हुई होंगी।
कॉम्पिटिशन नहीं करना मुझे तो गेम चेंजर बनना है 
वह आगे कहती हैं, मुझे मेरे साथी कलाकारों की सफलता से कोई कॉम्पिटिशन नहीं फील होती क्योंकि मुझे तो गेम चेंजर बनना है। जब मैं फिल्म इंडस्ट्री में आई थी मुझे यह नहीं पता था कि फिल्मों में एंट्री कैसे होती है, वह तो मेरे पास मिस वर्ल्ड का ताज था तो फिल्में मुझे ऑफर हो गईं। बॉलिवुड में अगर आप किसी को जानते नहीं हो तो आपको फिल्में नहीं मिलेगीं।
मुझे अच्छी तरह पता है कि मुझे कैसा प्रड्यूसर बनें रहना है 
निर्माता बन अपनी पहली ही मराठी फिल्म वेंटिलेटर के लिए राष्ट्रिय सम्मान प्राप्त करने वाली प्रियंका बताती हैं, अब मैं प्रड्यूसर भी बन गई हूं और फिल्म प्रड्यूस करने का यह निर्णय मैंने इसलिए लिया है, ताकि मैं नए लोगों के साथ फिल्म बना सकूं। मैं क्लियर हूं कि मुझे अपने प्रॉडक्शन हॉउस में नए टैलंट को मौका देना है और उनके साथ मिलकर छोटी-छोटी फिल्में बनानी हैं। नए ऐक्टर, डायरेक्टर, राइटर्स और सिंगर्स के साथ खूब काम करना है। अब देखिए न लोग राइटर्स को पैसे ही नहीं देते हैं, लेकिन मैं इन छोटी-छोटी बातों को ध्यान देती हूं। मैंने अब तक 50 से ज्यादा फिल्मों में काम कर लिया है, तमाम प्रॉडक्शन हॉउस के साथ काम किया है तो मुझे यह अच्छी तरह पता है कि मुझे कैसा प्रड्यूसर बनें रहना है। कॉर्पोरेट कंपनियां आई हैं, तबसे हम ऐक्टर भी बिजनस को समझने लगे हैं प्रियंका आगे बताती हैं, फिल्म के निर्माण में जब से कॉर्पोरेट कंपनियां आई हैं, तबसे हम ऐक्टर भी बिजनस को समझने लगे हैं। अब हम सिर्फ ऐक्टर नहीं हैं। हम एक ब्रैंड हैं। अब सिर्फ सेट पर जाकर अपनी खूबसूरत लाइनों को ही नहीं बोलना है, बल्कि खुद की मार्केट वैल्यू, खुद के ब्रैंड जैसी तमाम बातों का भी ध्यान रखना पड़ता है। सच तो यह है कि फिल्मों में काम करना और फिल्म बनाना एक बिजनस है। कोई इसलिए फिल्म नहीं बनाता कि वह सिर्फ अपने ड्रॉइंग रूम में बैठकर देखे। मेरे हिसाब से हर ऐक्टर को बिजनस की समझ होना जरूरी है। अभी माहौल ऐसा है कि कुछ कलाकारों को ज्यादा और बेहतर काम करने के बाद भी कम पैसा मिलता है और कुछ को जरूरत से ज्यादा मिलता है।

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