“मैं भी पत्रकार हूं” चला रहे दलाली की दुकान

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बिना पढ़े लिखे भी कर रहे पत्रकारिता

रायबरेली। पत्रकारिता में बढ़ती फर्जी पत्रकारों की भीड़ पत्रकारिता को ताक पर रख “मैं भी पत्रकार हूं” चला रहे दलाली की दुकान।

उत्तर प्रदेश के कई जिलों में इन दिनों फर्जी पत्रकार बनने और बनाने का गोरखधंधा तेजी से बढ़ता जा रहा है, सड़कों पर दिखने वाली हर दसवी गाड़ी में से एक गाड़ी या मोटर साईकिल में प्रेस लिखा दिखता नजर आ जाएगा।

लगातार बढ़ती फर्जी पत्रकारों की संख्या से न सिर्फ छोटे कर्मचारी से लेकर अधिकारी तक परेशान हैं बल्कि खुद समाज व सम्मानित पत्रकार भी अपमानित महसूस नजर आते है। कुछ फर्जी पत्रकारों ने तो अपनी गाड़ियों के आगे पीछे से लेकर वीआईपी विस्टिंग कार्ड भी छपवा रखे है जो लोग पुलिस की चेकिंग के दौरान उनको प्रेस का धौस भी दिखाते है। इनमे से तो बहुत से ऐसे पत्रकार है जो पेशे से तो भूमाफिया और अपराधी है। कुछ तो पढ़े लिखे न होकर भी पत्रकारिता कर रहे हैं।

कुछ तो ऐसे तथाकथित अपने को पत्रकार बताकर थाना, कोतवालियो मे सुबह से पहुँच कर देर रात दरोगा व कोतवाल के पास बैठ कर आनेवाले पीडित लोगों से काम करवाये जाने के नाम पर धन वसूली करते हुए देखे जा सकते है जबकि ऐसे लोगों का दूर-दूर तक पत्रकारिता क्षेत्र से कोई लेना देना नहीं है जो अपना लिखा हुआ खुद नहीं पढ सकते है तो वह पत्रकारिता कैसे कर सकते है यह एक सोचनीय विषय है।

पत्रकारिता जगत में असामाजिक तत्वों के प्रवेश से पत्रकारिता का स्तर भी गिर रहा है। पत्रकारो की बढ़ती भीड़ को सरकार का अनदेखा करना पत्रकारिता का स्तर तो गिरा ही रहा है वही अवैध धंधों का चलाने का जरिया भी बनता जा रहा है। पत्रकारिता के नाम पर अपराधी किस्म के लोग पुलिस से बचने के बजाय अब जेल जाने चाहिए।

अनुज मौर्य रिपोर्ट

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