डलमऊ (रायबरेली)। शेरनशाह बाबा की दरगाह पर अपनी परेशानियों से निजात पाने के लिए हर रोज इबादत करने वाले लोग आते हैं। यहां आने वाले अकीदतमन्दों की मुराद भी पूरी होती हैं। दरगाह शरीफ पर हिंदू-मुसलमान दोनों आकर बड़े ही अकीदत मंद से जियारत करते हैं और आने वाले हर जायरीन पर बाबा की नेमत बरसती है।
भारत देश सदियों से अध्यात्म व सूफी सतों की धरती रही है। इसी परम्परा का एक केन्द्र डलमऊ रहा है। इस स्थान पर अनेकों सूफी ने जन्म लिया हैं। इन्ही सूफियों मे से एक नाम हजरत शेरन्शाह रह. का भी है। बताया जाता है कि एक बार देश का एक मशहूर पहलवान आप की शोहरत सुनकर आपसे मिलने आया। उसने हजरत से कहा कि आप मुझे कुश्ती में हराकर दिखाएं तो मै आप के इल्म का कायल हो जाऊंगा। उस समय आप एक नीम के पेड़ की डाल अपने हाथों से झुकाए बकरियों को पत्तियां खिला रहे थे। आपने पहलवान की तरफ देखा और मुस्कुराकर कहा कि मेरे पास आओ वह पहलवान आपके पास आया। आपने कहा कि जरा इस टहनी को पकड़ों ताकि बकरियां पत्ती खाती रहे और मैं कुश्ती की तैयारी कर लूं। उस पहलवान ने जैसे ही टहनी पकड़ी वह उस टहनी के साथ ही लटकर ऊपर चला गया और चिल्लाकर कहने लगा कि हजरत मुझे नीचे ऊतारें। यह सुनकर आप मुस्कुराते हुए पेड़ को इशारा करते हैं और पेड़ झुक जाता है। आपकी शोहरत सुनकर स्वयं मुगल बादशाह दिल्ली से डलमऊ आया और आपसे दुआएं ली। आपका दरबार हर धर्म के लोगों से भरा रहता था। हजरत का आस्ताना डलमऊ कोतवाली के पास मौजूद है जो सामप्रदायिक सौहार्द की मिशाल है। यहां पर साल भर हिन्दू मुसलमान अकीदतमन्दों की भीड़ लगी रहती है। मुतवल्ली वली खान और अध्यक्ष इल्तिफाज हुसैन दरगाह की देखरेख करते हैं। अध्यक्ष ने बताया कि इन्ही बुजुर्गों की बदौलत ही हम सब लोग सुख चैन से रह रहे है। मुतवल्ली वली खान का कहना है कि अगर नेक और सच्चे दिल से हजरत की चौखट पर जो भी लोग आये हैं। वह कभी दुखी मन से वापस नहीं गये हैं।