शिवगढ़ (रायबरेली)। क्षेत्र के मनऊ खेड़ा मजरे शिवली में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन भी अमेठी जनपद के राजा फत्तेपुर से पधारे आचार्य डाॅ. उमेश तिवारी ‘जिज्ञासु’ ने दूसरे दिन की कथा में राजा परीक्षित का जन्म व श्रृंगी ऋषि का श्राप का वर्णन किया गया तथा अश्वत्थामा को द्रौपदी द्वारा पुत्र वध करने के बाद भी गुरु पुत्र होने के कारण क्षमा दान के संस्कार का वर्णन किया। महाभारत समापन के बाद पांडु वंश के राज्य स्थापना हुई। द्वापर युग-युग के अंत और कलयुग के आगमन का समय था कि तभी अभिमन्यु व उत्तरा के पुत्र राजा परीक्षित का जन्म हुआ वह भी महादानी थे और पांडु युग की परंपरा का निर्वहन कर रहे थे। किंतु कलयुग के प्रभाव से उन्होंने श्रृंगी ऋषि के पिता का अपमान कर दिया जिसका परिणाम रहा कि श्रृंगी ऋषि ने उन्हें श्राप दिया। त्रेता युग हो या द्वापर युग में गुरु का इतना बड़ा महत्व था कि द्रौपदी पुत्रों का वध करने वाले अश्वत्थामा को जब अर्जुन ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर वध करना चाहा तो द्रौपदी ने यह कहकर रोक दिया की यह आचार्य द्रोण का पुत्र है, और वह हमारे गुरु हैं। गुरु पुत्र का वध करना सर्वथा अनुचित है। यह सुनकर अर्जुन ने तत्काल प्रत्यंचा उतार दी, और उसको क्षमादान दे दिया। कथा के आरम्भ से पहले मुख्य यजमान प्रदीप शुक्ल व उनकी धर्मपत्नी गुडिया शुक्ला को पंड़ित बृजेन्द्र शुक्ल, बालेन्दु तिवारी के द्वारा विधि-विधान से मंत्रोच्चारण के साथ वेदी पूजन कराया गया तथा मण्डप की पूजा की गई। इस मौके पर शिव नरेश शुक्ल, रामनरेश, शिवकैलाश, जमुनाकांत दीक्षित, मनोज कुमार, ब्रम्भदत्त शुक्ल, पप्पू पासी आदि उपस्थित रहे।