जिला प्रशासन व कोतवाली पुलिस की मदद से अनाथ बच्चों को पहुँचाया गया अनाथ आश्रम
रायबरेली। मानवता की अगर मिशाल पेश की जाए तो रायबरेली के रहने वाले लोगों व पुलिस राजस्व विभाग भी ऐसे मौकों पर पीछे नहीं हटता, लेकिन बात की जाए तो राजा से प्रशासन के अधिकारियों की सक्रियता की तो कई कई जगहों पर निष्क्रिय दिखती है। कोतवाली थाना क्षेत्र के अंतर्गत रेलवे स्टेशन के पास डबल फाटक पर पुल के नीचे पल्ली तानकर रह रहे एक परिवार के एक और मुखिया ने जिला अस्पताल में इलाज के दौरान अंतिम सांसे ली। इसके मरने के बाद 3 बच्चे अनाथ हो गए। इन अनाथ हुए बच्चों को बेघर सुनकर लोगों का दर्द छलका पड़ा, जिसमें सहर में कई ऐसी संस्थाएं वादल काम कर रहे हैं जो इन बच्चों को भरण पोषण और पालने का काम करते हैं, पर मामला जब जिला प्रशासन के हाथ आया तो जिला प्रशासन ने बाल कल्याण विभाग के प्रोबेशन अधिकारी को बुलाकर उन अनाथ हुए बच्चों को लखनऊ के लिए शिफ्ट कर दिया। शहर के कई दल इन बच्चों को अपने साथ वह अपनी संस्था में रखना चाहते थे, पर मौके पर पहुंचे नगर मजिस्ट्रेट वाह कोतवाली प्रभारी अतुल कुमार सिंह प्राइवेट संस्थाओं को ना देकर सरकारी राजकीय बाल कल्याण विभाग को सौंप दिया। वही अनाथ बच्चों की मां का पुलिस प्रशासन व आई लोगों की मदद से अंतिम संस्कार किया गया। बताते चलें कि मृतक अंगूरन उम्र 40 वर्ष पत्नी मृतक सर्वेश कुमार मूलनिवासी सिधौली थाना बछरावां जो थाना कोतवाली नगर के रेलवे स्टेशन के पास पुल के नीचे पल्ली तानकर इसी तरह मजदूरी करके अपना जीवन यापन कर रहे थे। 1वर्ष पहले पति की बीमारी के दौरान मृत्यु हो गई थी लेकिन कल रात अंगुरन कि इलाज के दौरान मौत हो गई, जिसके तीन बच्चे हैं मिथुन उम्र 11 वर्ष, खुश्बू उम्र 7 वर्ष, रुख्सार 5 वर्ष है। जिनको अंगुरन मेहनत मजदूरी करके किसी तरह गुजर बसर कर रही थी। सहर कोतवाल की अनूठी पहल अनाथ हुए बच्चों के लिए की व्यवस्था एक तरफ तो सरकार दावे कर रही है कि हर एक व्यक्ति को रात ठहरने के लिए छत का इंतजाम किया जाएगा। वहीं रायबरेली के रेलवे स्टेशन के डबल फाटक के नीचे अपना बसेरा बना चुके सर्वेश जिनकी मौत आज से करीब 1 साल पहले हो गई थी। वहीं आज उनकी पत्नी लंबी बीमारी के बाद आज अपने तीन नाबालिग बच्चों को छोड़ चली गई। अब उन बच्चों का क्या होगा, यह बड़ा प्रश्न था ऐसे में उन बच्चों के लिए देवदूत के सामान बनकर शहर कोतवाल और नगर मजिस्ट्रेट व कई दल पहुंचे और उन्होंने उन बच्चों के लिए आने वाले भविष्य की चिंता करते हुए उन्हें लखनऊ के राजकीय बाल कल्याण विभाग को सिटी मजिस्ट्रेट की सहायता से सुपुर्द करवा दिया। ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि अपनी जिम्मेदारियों को छोड़कर ऐसे सामाजिक कार्यों की ओर यह काम करते हुए जाने जाए पर शायद यही वजह उन्हें लोगों से अलग करती है। इस घटना से लगता है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं लोगों के लिए कितना कारगर साबित होगी। यह दृश्य साफ-साफ इसका आईना दिखा रहा है।
वीवीआईपी जिले में तीन अनाथ बच्चों का रहनुमा कोई नहीं। बीती रात तीनों,बच्चों की मां का इलाज के दौरान जिला अस्पताल में मौत। एक वर्ष पहले पिता का साया बच्चों के सर से उठा चुका। तीनों नाबालिग बच्चों का रो रो कर बुरा हाल। सदर कोतवाली क्षेत्र के डबल फाटक पर खुले आसमान के नीचे रहता था बच्चों का परिवार।
अनुज मौर्य रिपोर्ट