आज ही साहित्य की “डाली” से टूटा था हिंदी का “सुमन”

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रायबरेली

05 अगस्‍त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्‍नाव जनपद के झगरपुर गांव में जन्‍मे हिंदी के प्रसिद्ध कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने आज ही के दिन (27 नवंबर 2002) को उज्‍जैन (मध्‍य प्रदेश) में अपने आवास “समर्पण” में आखिरी सांस ली थी. हिंदी समाज के वह सुमन जिनकी आखरी सांस हिंदी और हिंदी वालों के लिए ही समर्पित रही. उनका समर्पण सभी का जाना-पहचाना है. किसी से कुछ छुपा नहीं. सभी को याद होगा ही-
_”क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं”
मिट मिट कर भी नहीं मिटी-“मिट्टी की महिमा”_
आज से 18 बरस पहले साहित्य के “डाली” से हिंदी के इस “सुमन” के टूटने पर देश के के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था- “डॉ. शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ केवल हिंदी कविता के क्षेत्र में एक शक्तिशाली चिह्न ही नहीं थे बल्कि वह अपने समय की सामूहिक चेतना के संरक्षक भी थे।उन्होंने एक ओर अपनी भावनाओं का दर्द व्यक्त किया वहीं दूसरी ओर मुद्दों पर भी निर्भीक रचनात्मक टिप्पणी भी की थी।”
सुमन जी ने 1968-78 के दौरान विक्रम विश्वविद्यालय (उज्जैन) के कुलपति के रूप में काम किया। वह कालिदास अकादमी, उज्जैन के कार्यकारी अध्यक्ष थे। शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का कार्यक्षेत्र अधिकांशत: शिक्षा जगत से संबद्ध रहा।
अपनी जन्मभूमि से 1000 किलोमीटर दूर बसने के बावजूद सुमन जी का उन्नाव से नाता कभी नहीं टूटा. अपनी जन्मस्थली झगरपुर वह साल में एक बार आते जरूर थे. गांव की उनकी यह यात्रा हर छोटे-बड़े के लिए यादगार होती थी. सभी उनकी प्रतीक्षा के लिए आतुर रहते थे. वह कहते भी थे उन्नाव और उज्जैन का गोत्र एक है. दोनों ही हमें जीवन में खूब फले. उन्नाव के लोगों के लिए उज्जैन में उनके दरवाजे हमेशा हमेशा हमेशा के लिए खुले रहे. रात-बिरात हो या दिन दोपहर वह हर समय हिंदी प्रेमियों-सेवियो और लेखकों-कवियों के लिए उपलब्ध रहे.
वह साहित्य प्रेमियों में ही नहीं अपितु सामान्य लोगों में भी बहुत लोकप्रिय थे। शहर में किसी अज्ञात-अजनबी व्यक्ति के लिए रिक्शे वाले को यह बताना काफ़ी था कि उसे सुमन जी के घर जाना है। रिक्शा वाला बिना किसी पूछताछ किए आगंतुक को उनके घर तक छोड़ आता।
ऐसे जनप्रिय और हम सब के संरक्षक सुमन जी को 18वे निर्माण दिवस पर शत-शत नमन..

( सुमन जी के निधन के 4 वर्ष बाद स्मृतिशेष पिता कमला शंकर अवस्थी ने वर्ष 2006 में सुमन जी से चार दशक लंबी सानिध्य यात्रा में हुए पत्राचार के विशेष पत्रों को “अक्षर अनुराग” नाम से संग्रहित करते हुए एक पुस्तक का प्रकाशन किया था. इस पुस्तक में सुमन जी को याद करते हुए कुछ शब्द हमारे भी थे, वह साथ में संलग्न हैं. आप भी पढ़ें..)

गौरव अवस्थी की कलम से

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