सताँव (रायबरेली)। ‘बस्ता मा बांधे वसुंधरा, उई लेखपाल कहलावति हैं, जब कबो गांव मा पहुंचति हैं तो, राज्यपाल बनि जावति हैं।’ अवधी के प्रख्यात साहित्यकार रमई काका की यह पंक्तियां उनके समय से अब तक चरितार्थ होती आ रही हैं। इस बार यह पंक्तियां सदर तहसील की सतांव ग्राम पंचायत के लेखपाल कमल सिंह पर सटीक बैठती नजर आ रही हैं। आरोप है कि उन्होंने सरकारी जमीन पर कब्जा कराने के बदले कोडर गांव निवासी एक महिला से पांच हजार रुपए रिश्वत मांगी। महिला और लेखपाल के बीच हो रही सौदेबाजी की बातचीत का एक आॅडियो शोसल मीडिया में वायरल हुआ है। यद्यपि लेखपाल इस आॅडियो को फर्जी बता रहे हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि लेखपाल को जब सरकारी भूमि पर महिला के काबिज होने की जानकारी थी, तो उन्होंने उसके विरुद्ध कार्रवाई में विलंब क्यों किया? फिलवख्त मामले में जहां एक ओर पीड़ित महिला अपने उत्पीडन को लेकर लेखपाल के विरुद्ध शिकायत लेकर प्रशासन की चैखट पर फरियादी है, वहीं लेखपाल कमल सिंह एक बार फिर खुद को बचाने की तिकड़म लगा रहा है। सदर के तहसीलदार ने पूरे प्रकरण की विधिवत जांच कराने की बात कही है। दरअसल बीते कुछ समय से सोशल साइट्स पर एक महिला व एक पुरुष की बातचीत का एक मिनट 48 सेकेंड का एक आॅडियो वायरल है। जानकारी के मुताबिक यह आॅडियो सदर तहसील की सतांव ग्राम पंचायत के लेखपाल कमल सिंह व इसी पंचायत क्षेत्र के कोडर गांव निवासिनी ज्ञानवती पत्नी स्व. कन्हैया के बीच हुयी बातचीत का है। ज्ञानवती को शौचालय बनवाना है, लेकिन उसके पास स्थान नहीं है। उसने एक सरकारी भूखण्ड पर शौचालय बनाने की कोशिश की तो लेखपाल कमल सिंह पहुंच गये और महिला को धमकाया कि यदि उसने दुबारा इस जगह काबिज होने की कोशिश की तो उसके विरुद्ध कार्रवाई कर दी जाएगी। यह दीगर बात है कि इसी गांव में अन्य अनेक लोग सरकारी जमीन पर काबिज हैं। कानून के अर्दब में आयी ज्ञानवती ने लेखपाल से लेनदेन करके मामला सुलटाने की बातचीत की, और लेखपाल से हुयी बातचीत का आडियो बनवा लिया। आॅडियो में महिला एक हजार रुपए देने की पेशकश करती है, लेकिन कथित लेखपाल पांच हजार से कम लेने पर राजी नहीं होता। वह ऊपर तक देने की बात बताता है। ज्ञानवती का दावा है कि यह आॅडियो उसका व सतांव लेखपाल कमल सिंह का है, लेकिन लेखपाल इसे फर्जी बता रहा है। मामला अत्यन्त गंभीर और चैंकाने वाला है। जिलाधिकारी की बेदाग कार्यशैली और उनके नेतृत्व में एक सजग व स्वच्छ प्रशासनिक व्यवस्था को यदि दोयम दर्जे के कारिन्दों की वजह से सवालों के घेरे में खड़ा होना पड़े तो इसे गंभीर ही समझा जायेगा। चैंकाने वाला इसलिए क्योंकि लेखपालों के कारनामे होते ही हैं,चैंकाने वाले। पैसा लेकर सरकारी जमीन पर कब्जा कराना तो छोटी शिकायत है, यह भू-राजस्व रक्षक तो पैसा न मिलने की खीझ में ऐसे-ऐसे अभिलेख रच रहे हैं जिनको लेकर पीढ़ियों मुकदमें चलते हैं।