रायबरेली। बाल साहित्य की संरचना से बच्चों के संसार को ज्ञान-विज्ञान की अतुल संपदा से समृद्ध और प्रभामय करना है जिससे उनकी कल्पनात्मक अभिवृत्तियों और संवेदनाओं का विकास हो सके। प्राचीन काल के महान लेखकों ने अपनी कृतियों में ऐसे प्रसंगों का उल्लेख किया जो बच्चों का पर्याप्त मनोरंजन कर सकें तथा उनके भविष्य-पथ का मार्गदर्शक भी बनें। बाल साहित्य को पृथक रूप से लेखन की विधिवत परम्परा का श्रीगणेश उन्नीसवीं सदी माना जाता है। 19वीं, २20वीं तथा ५50वें दशक तक का रचित बाल साहित्य उपदेश एवं संदेश प्रधान है जिसका परिणामगत निष्कर्ष ही बच्चों में चरित्र्गत मूल्यों का विकास करता है। जनपद के एक ऐसे ही बाल साहित्कार डाॅ. चक्रधर नलिन का देहांत हो गया। उनके निधन के समाचार से जिले भर के साहित्य प्रेमियों में शोक की लहर दौड़ गई। जनपद के सतांव विकास खंड के अटौरा बुजुर्ग गांव में 19 जुलाई 1938 को जन्मे डाॅ. चक्रधर नलिन बाल साहित्यकार थे। बच्चों की रचनाओं में उनकी सर्वाधिक रूचि थी और वह बच्चों के लिए गीत लिखते थे। उनके निधन के समाचार से जनपद भर के साहित्य प्रेमी दुखी हैं। सतांव में अभिनव साहित्यिक संस्था द्वारा एक शोकसभा का आयोजन किया गया। शोक सभा में चक्रधर नलिन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार निर्मल प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा कि डाॅ. नलिन का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार व प्रभावशाली था। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य के क्षेत्र में उनकी कविताएं सदैव याद की जाएंगी। मधुर श्रीवास्तव में उन्हें श्रद्धांजलि दी और कहा कि दलित साहित्य सेवा से जनपद का नाम पूरे प्रदेश और देश में रोशन हुआ है। इस दौरान तमाम साहित्यकार मौजूद रहे। उल्लेखनीय है कि डाॅ. नलिन श्री परिवार के मुखिया मनोज द्विवेदी ‘दादा श्री’ के पिता हैं। उनका निधन लखनऊ स्थित आवास पर हुआ।