डीएम साहब आखिर इस सरकारी अस्पताल की दवाइयां क्यो पड़ी है कूड़े के ढेर में

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महराजगंज रायबरेली
सरकार द्वारा गरीबों के इलाज के लिए करोड़ों रूपये खर्च कर दवाएं मुफ्त में उपलब्ध करायी जा रही हैं परन्तु अस्पताल के चिकित्सकों की खाऊ कमाऊ नीति के चलते दवाएं कूड़े के ढेरों में फेंकी और जलाई जा रही हैं। यही नही रोगी आश्रय स्थल में रोगी तो नही परन्तु सरकारी दवाएं कूडे़ की तरह फेंकी हुई देखने को जरूर मिल रही हैं। बीते मंगलवार को जहां अस्पताल के पीछे दवांए जलाने की फोटो लोगो द्वारा मोबाइल पर वायरल हो रही हैं। वहीं रोगी आश्रय स्थल (रैन बसेरा ) में भी जगह जगह कूडे़ की तरह दवाएं फेंकी हुई पड़ी हैं।
बताते चलें कि सरकार द्वारा भेजी गयी दवांए अस्पतालों में डम्पकर रख दी जाती हैं और चिकित्सकों द्वारा हर आने वाले मरीज को बाहर की दवाएं लिखकर मोटी कमाई की जाती है बाहरी दवांओं को लिखने को लेकर यदि कभी कोई शिकायत हो भी गयी और कोई अधिकारी निरीक्षण करने पहुंच भी गया तो उसे गुमराह कर दिया जाता है और एक दो दिन दवाएं लिखनी बन्द हो जाती है और फिर वही सिलसिला शुरू हो जाता है। क्यों कि जब अस्पताल के अधीक्षक स्वयं ही बाहरी दवाएं खुलेआम लिखेंगे तो अन्य चिकित्सकों को बाहरी दवाएं लिखना लाजमी है। ऐसे में सरकार द्वारा भेजी गयी दवाओं को कूड़े में फेंकने व जलाने के सिवा और कोई रास्ता भी नही है। मालूम हो कि बीती शाम साफ सफाई के दौरान अस्पताल के पीछे कूड़े के ढेर में फेंकी गयी दवाएं अधीक्षक द्वारा स्वयं खडे़ हो अपने सामने ज्ल्वाए जाने के दौरान लोगो ने फोटो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। वहीं दूसरे दिन जब रियलिटी चेक किया गया तो अस्पताल के पीछे बने रोगी आश्रय स्थल के अन्दर नजारा ही अलग था। इस भवन के अन्दर जहां रोगियों के रहने की व्यवस्था होनी चाहिए वहां सरकारी दवाओं का अम्बार लगा हुआ है,मौके पर रोगी आश्रय स्थल क़े जीने क़े पास कूड़े क़े ढेरो में दर्जनो गत्तों में बांटने को आए आयरन, निरोध व माला डी इधर उधर खुले में फेंके मिले। कूड़े क़े ढेर में फेंके आयरन क़े डिब्बे पर एक्सपायरी डेट मार्च 2021 क़ी देखी गयी। नाम ना छपने क़ी शर्त पर एक चिकित्सक ने बताया क़ी बाहर क़ी दवा लिखे जाने क़े चलते इन दवाओ क़े एक्सपायरी होने का इन्तेजार किया जा रहा जिससें इनको भी जलाया जा सके। इससे सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र अधीक्षक राधाकृष्णन सहित जिम्मेदारों की कार्यशैली को भली भांति समझा जा सकता है।

अनुज मौर्य/एडवोकेट अशोक यादव रिपोर्ट

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