आखिर कब तक उपेक्षित रहेगा शहर की शान रेवतीराम का तालाब।
रायबरेली। वैसे तो विश्व धरोहर दिवस तो हम लोग प्रतिवर्ष मनाते हैं, लेकिन उसका मकसद अभी अपूर्ण है।रायबरेली जैसे वीआईपी जिले में अपनों की बेरुखी से जिले की शान मिट रही है।जिनके नाम से जिला जाना जाता है, उनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। चाहे फिर सरकार हो या फिर जिला प्रशासन के अधिकारी और जनप्रतिनिधि। सब कुछ जानकर अंजान बने हैं। कभी धन भी आता है, लेकिन इन धरोहरों की मरम्मत के बजाय उसका घालमेल किया जाता है।
यहाँ बात कर रहे है शहर से सटे पर्यटन स्थल माना जाने वाले रेवतीराम का तालाब की।जो उपेक्षा का शिकार हो रहा है।
कहते है कि 19वीं सदी के मध्य में जब रायबरेली के अहिया रायपुर ग्राम में सूखा पड़ गया था तो किसानों की मदद के लिए राय साहब नसीराबाद परिवार में जन्मे स्व० राजा हर प्रसाद ने एक विशाल तालाब का निर्माण शुरू किया। जिसमे एक के बाद एक सात कुएं खुदवाने पर भी पानी नहीं निकला। तब ज्योतिषियों और विद्वानों की सलाह मानते हुए राजा साहब ने क्षेत्रवासियों की समस्या के निदान के लिए उसी क्षेत्र के कायस्थ लाला रेवती राम ने अपने नवजात पुत्र का बलिदान दिया। तदोपरांत ये तालाब, लाला रेवती राम का तालाब के नाम से आज तक जाना जाता है। विशाल चहारदीवारी और भव्य कक्षों से घिरे इस तालाब में पानी आज तक नहीं सूखा और जो खास बात ध्यान देने योग्य है वो यह है कि पानी एक साल में चार बार रंग भी बदलता है।
यह ऐतिहासिक तालाब सरकार और जिला प्रशासन की उपेक्षा का शिकार हो गया है।यहां तालाब में गंदगी का अंबार लगा हुआ है।पानी मे काई जमी है।साथ ही उचित रख रखाव न होने से कुछ अराजकतत्वों का भी जमावड़ा लगा रहता है।अगर देखा जाए तो इस रेवतीराम तालाब का सुंदरीकरण करके और बेहतर बनाया जा सकता है।साथ देखरेख करने वाले माली की भी व्यवस्था कर दी जाए तो यह उपेक्षित ऐतिहासिक धरोहर के दिन फिर से लौट आएंगे।आस-पास व दूर दराज के लोगों के लिए पर्यटन स्थल बन जायेगा।यहां वर्ष में सिर्फ एक बार मेले का आयोजन होता है,तब ही कुछ हल्के फुल्के कार्य करवा दिए जाते है।
अनुज मौर्य रिपोर्ट