रायबरेली। करीब 25 साल बाद फिर साथ आए सपा-बसपा के सामने चुनौतियां भी कम नहीं है। अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के वोटों के लिए जहां गठबंधन और भाजपा आमने-सामने होंगे, वहीं मुस्लिम वोटों को लेकर उसे कांग्रेस से पार पाना होगा। हालांकि दोनों दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती उन 42 जिलों के दावेदारों को संभालना होगा जो गठबंधन में दूसरे के हिस्से में चली गई हैं। इस गठबंधन के बीच सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी की राजनैतिक सरगर्मियां तेज हो गईं हैं। राहुल गांधी के हिस्से में केवल गठबंधन ने उनकी मां की संसदीय सीट दी है। हालांकि कांग्रेस ने सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया है। फिलहाल सोनिया के गढ़ में इस बार सियासत की आबोहवा बदलने की उम्मीद की जा रही है। सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में 2009 और 2014 के चुनाव में सपा ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था। 2006 के उपचुनाव में बसपा ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था। यह पहला अवसर है जब उत्तर प्रदेश की दोनों प्रमुख राजनैतिक पार्टियां कांग्रेस के गढ़ रायबरेली में सोनिया व अमेठी में राहुल गांधी को वाकओवर देने जा रहीं हैं। सपा ने रायबरेली संसदीय सीट पर कई बार प्रत्याशी उतारकर मैदान मारने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सकी। बसपा ने भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे, लेकिन वह भी मैदान नहीं मार सकी। भाजपा को भी फिलहाल बीते चार चुनावों से निराशा हाथ लग रही है। लखनऊ में हुये सपा और बसपा में गठबंधन के बाद सीटों के बंटवारे का ऐलान कर दिया गया है। इसमें रायबरेली और अमेठी खाली छोड़ी गयी। यदि यह सीट खाली रही तो पहली बार सोनिया गांधी सीधे भाजपा से टकरायेंगी। उधर भाजपा ने कांग्रेस को उसके गढ़ में घेरने के लिये बिसात बिछाना शुरू कर दिया है। और इसकी शुरूआत किसी और ने नहीं बल्कि देश के प्रद्दानमंत्री और बीजेपी का प्रमुख चेहरा माने जाने वाले नरेन्द्र मोदी ने की है। रेलकोच कारखाने में जनसभा कर चुके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना काम शुरू कर दिया है। हालांकि गठबंधन के सामने तमाम समस्यायें हैं। भले ही सपा-बसपा गठबंधन का मुख्य फोकस अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े, अल्पसंख्यक, महिलाओं और युवाओं पर है। किन्तु भाजपा ने भी इन्हें जोड़ने के लिए कम काम नहीं किया है। सपा व बसपा का संगठनात्मक ढांचा मजबूत है, लेकिन भाजपा ने इस पर बहुत कसरत की है। 25 साल पहले की तुलना में आज की भाजपा में बड़ा बदलाव है। भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग व बूथ मैनेजमेंट पर काफी काम किया है। मुस्लिम मतों के लिए इस बार सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस में मारामारी रहने की संभावना है। तीन राज्यों में चुनाव जीतने के बाद मुस्लिमों का रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ है। ऐसी स्थिति में मुस्लिम मतों का रुझान काफी हद तक गठबंधन को प्रभावित करेंगे। फिलहाल अब सबकी नजरे कांग्रेस के गढ़ पर टिकी हुयी हैं।