…कोचिंग हैं,भई कोचिंग हैं।
जगतपुर(रायबरेली)। क्या मजे से कोचिंगे चल रही है। सुबह-शाम बच्चे कोहरे और धुंध में पीठ पर बैग टांग कर।इस कोचिंग से उस कोचिंग चक्कर लगाते देखे जा सकते हैं। और तो और सुबह 7:00 बजे निकली बालिकाएं शाम को 7:00 बजे ही घर पहुंचती हैं।कारण बस एक हैं कि अभिभावक भी चाहता है कि अधिक से अंक आएंगे कोचिंग पढ़ने से।अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त होगा,अब सवाल यह उठता है कि सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक भी इन कोचिंगों के संचालन में पर्याप्त जिम्मेवारी निभाने में जुटे हुए हैं।क्या इन्हें अपनी पगार कम लगने लगी है या इनकी आवश्यकताएं बढ़ गई हैं इसका उत्तर तो शायद अब यही दे पाए! पर एक बात तो तय है स्कूलों में पढ़ाई की व्यवस्था शून्य सी होती जा रही हैं।तभी तो अभिभावक ट्यूशन पढ़ाने पर पैसा खर्च कर रहे हैं। क्षेत्र के रायबरेली रोड पर स्थित प्राइवेट विद्यालय, सलोन मार्ग से होकर गुजरने वाली सड़को पर तो बिल्कुल कोचिंग हब ही बन गया है।वही डलमऊ रोड पर भी इन कोचिंगो की भरमार है। कई विद्यालयों के अध्यापक तो स्कूल के बाहर ही कोचिंगे चलाने लगे हैं, कोचिंग पढ़ना और पढ़ाना कुछ गलत नहीं है, बशर्ते सरकार द्वारा रजिस्टर्ड हो कोई भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति अपने ज्ञान को बांट सकता है पर सरकार द्वारा जो नुमाइंदे ड्यूटी पर लगाए गए हैं वह भी कमीशन का मोटा माल रख रहे तभी तो आज तक इन पर निगाहे करम बनी हुई है।
अनुज मौर्य/मनीष श्रीवास्तव रिपोर्ट