तथाकथित धर्म के ठेकेदारों को अमेठी के मो. अनीस से लेनी चाहिए सीख
डलमऊ (रायबरेली)। ‘वो मंदिर, मस्जिदों में फर्क करना, सीख जाते तो, तरीके तौर मुस्लिम, हिंदुओं के सीख जाते तो। हवा पानी उजाले अन्न खुशबू, सब जुदा होती, हमारे देवता जो कौम मजहब, सीख जाते तो॥’ जी हां, दुनिया बनाने वाले के मन में इंसानी जिन्दगी में जहर घोलने की तरकीबों ने जन्म नहीं लिया, यह जातीय वैमनस्य व कौमी असहिष्णुता तो इन्सानी फितरत का परिणाम है। समाज में धार्मिक उन्माद पैदा करके अपना मकसद कामयाब करने वाले धर्म के तथाकथित ठेकेदारों को अमेठी के मोहम्मद अनीस को अपना आदर्श मानना चाहिए। मोहम्मद अनीस प्रत्येक माह की पूर्णिमा या अमावस्या को हर परिस्थिति का सामना करके पतित पावनी मां गंगा में डुबकी अवश्य लगाते हैं। अनीस को हिन्दू देवी-देवताओं से सम्बन्धित अनेक धार्मिक व आध्यात्मिक अन्तर्कथायें भी याद हैं। वह सभी धर्मों के बारे में जिस अदब और सम्मान के साथ पेश आता है, वह अनुकरणीय है। पूरेलाला मजरे कंठूपुर थाना जगदीशपुर तहसील मुसाफिरखाना जिला अमेठी के रहने वाले मोहम्मद अनीस पेशे से किसान है। मोहम्मद अनीस अपने गुरु के साथ लगभग 25 सालों से स्नान करने के लिये डलमऊ के शंकट मोचन घाट पर आते है। अनीस का कहना है कि हम लगभग 25 सालों से घाटो पर स्नान करने के लिये आ रहे है। जब हम स्नान के लिये आना शुरू किया था तो तब इन घाट किनारे बैठे पुरोहित के पिता बैठते थे। दुख की बात है यह है कि वह पुरोहित तो नहीं हैं लेकिन उनके लडक़े आज भी हम से जुड़े हुये हैं। वहीं गांव में भी गुरु जी के नाम से शंकर जी का मंदिर बना हुआ है। मोहम्मद अनीस कहते है कि उस मंदिर को खोलने से लेकर उसकी सुरक्षा तक कि बंदोबस्त वह स्वयं करते है। उन्होंने बताया कि हम और हमारे गुरु पवन श्रीवास्तव और गांव के प्रधान रमेश सिंह, प्रकाश सरोज, चदरी सिंह बीती रात को पिकप से मौनी अमावस्या पर स्नान के लिये आये थे। हम सभी लोग मिलकर शिवरात्रि के एक दिन पहले मंदिर पर भण्डार कराते है। जिनमें हजारों लोग प्रसाद ग्रहण को आते हैं।
रिपोर्ट : मेराज अली