- प्रियांशु गजेन्द्र
- एक फूल गिरा फिर डाली से,
सारा उपवन हो गया मौन,
भंवरे तितली फिर हैं उदास,
गीतों की कड़ियाँ टूट गयी,
स्वर में है सुनी दीर्घ स्वांस,
सहमी सहमी हर कली आज,
कुछ डरी डरी है माली से।
एक फूल…………
पत्तों के नम हो गए नयन,
शूलों को भी रोना आया,
उत्सवमय सारा स्वर्गलोक ,
एक दुलहन का गौना आया,
कैसी है रीति विधाता की,
कैसा है ईश्वर का विधान,
सारी धरती जो नाप गया,
उसके हिस्से कोना आया,
जाने फिर कौन कहाँ छूटे,
डर लगता अब रखवाली से,
एक फूल…………………..।
हम दिन दिन रचते जाते हैं,
अपने सपनों के शीश महल,
बच्चे बन खेल खिलौने से,
कुछ पल की खातिर गये बहल,।
कुछ पल तक सारा खेल रहा,
कुछ पल हम राजा रानी थे,
कुछ पल में सब कुछ नष्ट हुआ,
कुछ पल में सब कुछ गया बदल,
कुछ पल का नाता जीवन का
था स्वांसों की मतवाली से,
एक फूल…………………।
तुम अटल तपस्वी जीवन के,
तुमसे मेरा सम्मान बढ़ा,
तुमसे रजनी हो गयी अस्त,
फिर पूरब में दिनमान चढ़ा,
वीरता पराक्रम पौरुष के,
हे तेजपुन्ज हे महापुरुष,
तेरी छाया में भारत ने,
था कारगिल में जयगान पढ़ा।
तुम इक इतिहास रचयिता थे
जग में शोणित की लाली से
एक फूल …………………….।
(साभार-फेसबुक वाॅल से)