सुन्दर सुखद सबेरा”कभी अपने लिए भी”

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डेस्क

“कभी अपने लिए भी”

सोती हूँ रोज मैं
इस विचार के साथ
जिऊँगी कल सिर्फ और सिर्फ
अपने लिए !!
और उठ जाती हूँ चौंककर,
घड़ी के अलार्म से
फिर से जुट जाती हूँ रोज की तरह….!
बाबूजी की चाय,,माँजी की दवाई
बच्चों का टिफिन,,
साहब के कपड़े,,कामवाली के झगड़े
चिड़ियों का दाना जल्दी से नहाना
तुलसी का चौरा ठाकुर जी की पूजा
फिर दोपहर का खाना
बच्चों को लाना
मेहमानों का आना बाजार जाना
रात का खाना और फिर सो जाना
इस विचार के साथ
कि जिऊँगी कल
सिर्फ और सिर्फ
!!अपने लिए!!

दीप्ति अनिल चौहान की कलम से

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