हाहाहा..इस दशहरा मैं नहीं मरूंगा- रावण

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नेशनल डेस्क

यह कोरोना काल चल रहा है साहब! सब कुछ उल्टा पुल्टा है तो राम की लीला में क्यों ना हो? रावण ऐठा हुआ है. कह रहा है, इस बार नहीं मरूंगा तो नहीं मरूंगा.. चाहे जो कर लो..
आइए! चलते हैं कोरोना काल की रामलीला देखने..

दृश्य-1

स्टेज पर पर्दा पड़ा हुआ है. सामने दर्शक दीर्घा खाली है. बगल में हारमोनियम-तबला वाले धूम..धा..धा.. के साथ शुरू हो चुके हैं. लीला के पहले साज बजती ही इसलिए है कि दर्शक आ जाएं.बजाना आदत में है नहीं तो इस बार कोरोना के चलते दीर्घा दर्शकों से खाली रहनी ही है. खाली है भी. स्टेज की लाइट अभी-अभी ही जली है. कम उम्र वाले दो जोकर स्टेज पर इधर से उधर-उधर से इधर होने शुरू हो गए हैं. पर्दा धीरे-धीरे खुला और हाहाहाहा..हा.. हा.. रावणी हंसी-हंसता हुआ काले कपड़ों में बना हुआ “रावण” सामने प्रकट होता है. रावण ने जयकारा लगाया-” कोरोना काल की जय- जय-जय कोरोना” “जब तक कोरोना काल रहेगा-रावण तेरा राज रहेगा” टोपी धारियों की स्टाइल में बोला- यह कोरोना काल मेरा नया भाई है. मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. अहिरावण-मेघनाद जाओ ट्वीट कर दो- “इस बार रावण नहीं मरेगा..” व्हाट्सएप- फेसबुक पर भी वायरल कर देना. लाइक-कमेंट का अपडेट देते रहने की हिदायत देते हुए रावण का रोल ओवर. पर्दा गिरा रे…

दृश्य-2

अशोक वाटिका में सीता ( विश्व की अर्थव्यवस्था की तरह ) गुमसुम बैठी हैं. हनुमान जी “कोरोना योद्धा” वाला पास लेकर किसी तरह लंका में सीता का पता लगाने पहुंच चुके हैं. सड़क पर सन्नाटा है. कोरोना की विभीषिका के चलते विभीषण भी घर में दुबके हुए हैं. हनुमान जी ने घंटी बजाई लेकिन विभीषण “कोरोना तो नहीं” की सोच कर कुंडी खोलने से ही डर रहा है. बहुत हिम्मत कर दरवाजे के पास तक आया और ऊंची आवाज कर पूछा-कौन? “मैं हनुमान” विभीषण दरवाजा खोलो “मैं हनुमान”. बंद दरवाजे के अंदर से ही विभीषण ने कहा- “जाओ हनुमान फिर कभी आना. कोरोना फैला हुआ है. सरकारी फरमान नहीं सुना है क्या- “दो गज की दूरी-है बहुत जरूरी” मैं मजबूर हूं. तुम भी घर जाओ नहीं तो कोरोना इनफेक्टेड हो जाओगे. वैसे भी अभी इसका टीका नहीं बना है. टीका बन जाए तब आना..” सीता माता का पता लगाया और पहुंच गए अशोक वाटिका. मां सीता हनुमान को अकेले देख कर जिज्ञासा शांत करने लगी-” मेरे प्रभु राम क्यों नहीं आए” हनुमान जी बोले-” माते! कोरोना के डर से अपने देश में लॉक डाउन कर दिया गया है. बड़ी मुश्किल से मेरा ही “पास” बन पाया. पास पर एक ही व्यक्ति अलाउ है. दो लोग एलाऊ होते तो प्रभु राम जरूर आते..” मां सीता बोली-” इतनी दूर से आ रहे हो. थके-हारे होगे. कुछ आराम कर लो. कुछ खा-पी लो, तब जाना है. “नहीं माते! समय बहुत खराब चल रहा है. समय रहते निकल जाऊं. पता नहीं कब कर्फ्यू लग जाए”- हनुमान जी ने कहा. कड़कड़..कड़कड़-गड़..गड़..गड़.. की आवाज के साथ पर्दा गिरा रे..

दृश्य-3

प्रभु राम पर्णकुटी में बैठे हैं. लखनलाल दरवाजे पर खड़े हनुमान जी की राह देख रहे हैं. वानर सेना भी इधर-उधर डाल पर बैठे समय काट रही है. अचानक प्रभु राम का मोबाइल घनघनाया. नेटवर्क “वीक” होने से आवाज कट-कट के आ रही थी. उधर से हनुमान जी जल्दी-जल्दी अपनी बात बोले जा रहे थे, बिल्कुल वैसे ही जैसे “कौन बनेगा करोड़पति” में अमिताभ बच्चन सवालों के जवाब के लिए हॉटसीट पर बैठे कंटेस्टेंट से कहते रहते हैं, घड़ी महारानी का डर दिखाकर. हनुमान जी बोले-” प्रभु! सीता मां का पता लगा लिया है. बहुत वीक लग रही थी. कहने लगी-“हनुमान! हमें यहां से ले चलो.” सीता के वीक होने की खबर सुनकर प्रभु राम उदास हो गए.. बोले-“हनुमान! सीता को ले ही आओ. अब लीला-वीला नहीं करनी. बहुत हो गया”. खरखराती आवाज में उधर से हनुमान जी कह रहे हैं- प्रभु! अकेले ही आने में नाको चने चबाने पड़े. फिर मां सीता को लाकर आप की लीला कैसे बिगाड़ दूं.. मैं वापस चल पड़ा हूं. रास्ते में चेकिंग बहुत तगड़ी है. आने नहीं दे रहे. कह रहे हैं यह पास तो एक तरफ का है. दूसरी तरफ का दिखाओ या नया बनवा कर लाओ..क्या करूं..समझ में नहीं आ रहा.. यह कहते कहते फोन कट गया. नेटवर्क चला गया.. हनुमान जी बुदबुदाने लगे-” आजकल के नेटवर्क साले!” न सोडा काम करता है ना एयरपेल.. जियो तो और जीने नहीं देता.. अबकी पोर्ट करा ही लूंगा..

दृश्य-4
पर्दा खींचा जा रहा है. एक जगह कपड़ा फस गया. कोने में लुका खड़ा एक जोकर दौड़ा और पर्दा समेटे हुए दूसरी तरफ भागा. पर्दा खुला रे..लीला के मंच पर काले कपड़ों में सजा रावण एक बार फिर प्रकट हुआ.. हा हा हा हा हा.. यह कोरोना काल मेरा है. इस बार राम भक्तों तुम चाह कर भी हमें मार नहीं सकते. देश में रामराज्य है तो क्या हुआ? समय बदल गया है. रामराज्य में रावण को मारना तो दूर, मारने की परमिशन भी नहीं मिलेगी. चाहे कुछ भी कर लो.. ना भरोसा हो तो ट्राई करके देख लो. राम भक्तों! वैसे भी तुम लोगों के मारने से हम अब तक मरे कहां हैं? यह कहते-कहते रावण थोड़ा आध्यात्मिक हो गया.. बोला-” राम के काल में तो मैं एक ही था. अब तो मैं तुममें से अधिकांश के अंदर हूं.. पहले अपने अंदर के रावण को मार लो तब हमें मारना..” रावण कहे जा रहा है- राम को अपने दिल से निर्वासन देने वाले भक्तों राम को अपने अंदर समा लो तो रावण अपने आप ही मर जाएगा.. हमेशा हमेशा के लिए, बार-बार उसे मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी. जोर के ठहाके लगाते हुए रावण अंतर्ध्यान हो गया.. पर्दा गिरा रे..

आज की लीला देखने के लिए दर्शक तो नहीं थे लेकिन दूरदर्शन पर लाइव प्रसारण से दूर-दूर तक लोग रावण के इस आत्मविश्वास को देख हैरत में थे. हजारों-लाखों-करोड़ों राम भक्त (रामलीला और दशहरा मेला के आयोजक ) जल्दी-जल्दी प्रार्थना पत्र टाइप करा कर परमिशन लेने सरकारी कार्यालय पहुंच गए- “सरकार! बहुत हो गया.. हमें परमिशन दे दीजिए.. हम एक-एक रावण को चुन-चुन कर मारेंगे, लेकिन यह क्या? सरकार ने जैसे कुछ सुना ही नहीं. तभी एक आकाशवाणी हुई.. सैकड़ों हजारों साल से रावण को बार-बार मार कर भी नहीं मार पाए.. अब एक साल नहीं मारोगे तो क्या बिगड़ जाएगा? तुम्हारे बैंक खातों की तरह रावण को मारने में यह साल “ब्लैंक” हो जाएगा तो क्या हो जाएगा? मारना ही तो है तो अबकी बार कोरोना को मारो. आकाशवाणी में “जब तक दवाई नहीं-तब तक ढिलाई नहीं” का “ज्ञान” पिलाते हुए जोर देकर कहा गया- “भाइयों-बहनों! मास्क पहनना जरूरी है, रावण को मारना नहीं. इस बार अपने अंदर के रावण को मारकर दशहरा मनाओ!

आकाशवाणी का सपोर्ट पाकर रावण फिर से शुरू हो गया-“राम ने एक बार रावण को क्या मारा, बार-बार हमें ही मारे जा रहे हैं. खुद के अंदर बैठा रावण नहीं देखते. देखा होता तो, हाथरस कांड ना होता. हैदराबाद वाली सीता जिंदा होती.. और दिल्ली की निर्भया ना होती तो आज के रावण पर अंकुश के लिए तो कानून ही ना बनता.. फिर बार-बार हमें ही क्यों? हमने तो सीता को आंखों से देखा तक नहीं. हाथ से छुआ भी नहीं. हमने तो सीता का “हरण” समाज के रावण की पहचान और विनाश के लिए किया था. हमारा रावण तो पूरा का पूरा बाहर था, आज अंदर-अंदर और न जाने कितने अंदर-कितने रावण कितनों में बैठे हुए हैं. हमें तो कथित रूप से मार-मार कर ही आप सबने अपने अंदर के रावण को जिंदा कर डाला है. हे भक्तों, प्लीज! इस बार पहले अपने बीच के-अपने अंदर के रावण को मारिए.

..और इस तरह इस दशहरा रावण जिंदा बच गया.अगले साल तक के लिए..

गौरव अवस्थी की कलम से

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