रायबरेली। क्या अलग होती थी वो बचपन की दीपावली जब मिट्टी से घर बनाया करते थे । ये मिट्टी के घरौंदै अब यादों तक ही सिमित रह गए हैं पता नही क्या जैसे जैसे बडे हुए मानों परम्परा ही गुम हो गई । हालांकि यह परम्परा गॉवों से शहर तक पहले थी लेकिन अब गॉवों मे इक्का दुक्का ही ये मिट्टी के घरौंदे दिखाई देते हैं, हम जब भ्रमण पर निकली तो चांदा गॉव मे एक नन्हा बालक आनंन्द मिल गया जो अपने घरौंदे को अंतिम रूप दे रहा था । आनंद से बात की तो बताया वो अभी इसे कलर भी करेगा जो दीपावली से पहले पुरा हो जाएगा । वो इसमे दीपावली भी जलाएगा । हालांकी आनंद क्लास सात का छात्र है पढने जाता है स्कूल से छूट्टी के बाद घरौंदे बनाता है। बताया कि वो इसके बारे मे मम्मी से सुना था मे तो बना रहा है। इस घरौंदे सहित मोहल्ले मे बहुत बच्चों ने बनाया है हालांकि सबसे बेहतर ये लगा तो विशेष बात कि गई ।
घरौंदे से जुड़ी पौराणिक कथा
भगवान श्रीराम चौदह साल के वनवास के बाद कार्तिक मास की अमावस्या के दिन अयोध्या लौटे थे.तब उनके आगमन की खुशी में नगरवासियों ने घरों में घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था.उसी दिन से दीपावली मनाए जाने की मान्यता रही है.कहा जाता है कि अयोध्यावासियों का मानना था कि भगवान श्रीराम के आगमन से ही उनकी नगरी फिर वसी है.इसी को देखते हुए लोगों द्वारा घरौंदा बनाकर उसे सजाने का प्रचलन आरंभ हुआ.
आंगन की शान घरौंदा
ग्रामीण इलाके में मिट्टी द्वारा निर्मित घरौंदा की एक अलग पहचान थी.पहले शहरी क्षेत्रों में भी दीपावली के मौके पर इसे बनाया जाता था. लेकिन अब तो गांव में भी इक्का-दुक्का बड़ी मुश्किल से दिखाई देता है. बावजूद इसके आज भी सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में घरौंदा की अलग पहचान है.मिट्टी की चहार दीवारीनुमा घरौंदा दीपावली में आंगन की शान माना जाता है।
अनुज मौर्य रिपोर्ट