सरल, सजह व्यक्तित्व वाले दिलीप सिंह के असमय निधन से जिले में शोक की लहर
रायबरेली। ‘चिट्ठी न कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश, जहां तुम चले गये…, हर दिल में रह गयी बात, जल्दी से छुड़ाकर हाथ, कहां तुम चले गये!’ किसको कितनी सांसें मिलती हैं यह ईश्वर तय करता है लेकिन असमय और अचानक कोई अपना चला जाए तो मन का टूटना स्वाभाविक है। वात्सल्य और ममता की अर्थी उठ गयी। उम्मीदों, अरमानों और कल्पनाओं की होली जल गयी। गमजदा कुनबे की हर आंख सूख गयी। 55 साल के मिलनसार व्यक्तित्व दिलीप सिंह के अचानक धरती से उठ जाने के बाद उनके परिजनों और स्नेही स्वजनों के हालात देखकर गम भी गमजदा है। मौत के मातम में डूबा हर रिश्ता तनहा हो गया है। यह खबर मैं अपने बेहद आत्मीय मित्र, सहयोगी शहर के पत्रकार पुरम् निवासी वरिष्ठ पत्रकार दिलीप सिंह के लिए लिख रहा हूं। मन के विचारों को कागज पर उतारना प्रायः बेहद संतोषप्रद होता है। शायद पहली बार ऐसा हो रहा है कि लिखना तो है पर कलम का एक-एक शब्द बेहद तकलीफदेह है। क्या लिखूं उस दिवंगत मित्र के बारे में? दिवंगत!! हां, अब नियति का यही क्रूर यथार्थ है। वर्ष-2008 में जीवन की पगडण्डियों पर मिले अपने इस अभिन्न के लिए अब दिवंगत शब्द का प्रयोग करने का साहस कलम नहीं कर पा रही। हंसकर मिलना उसकी दिल जीतने की सबसे बड़ी कला थी। हाल ही में जब वह बीमार हुए तो कष्ट था लेकिन यह नहीं पता था कि वह ऐसे साथ छोड़ देंगे। खुशी में साथ खिलखिलाना और वेदना के प्रत्येक पल में साथ रहना दिलीप सिंह का सबसे बड़ा गुण था। सुना था कि इंसान परिस्थितियों का दास होता है लेकिन देख भी लिया। इन्ही परिस्थियितों की वजह से मैं हाॅस्पिटल मिलने नहीं जा सका। पर यह उम्मीद भी नहीं थी कि ऐसा होगा! श्रविवार को पत्रकार बिरादरी के वरिष्ठ ओम प्रकाष मिश्र (बच्चा दादा) का फोन आया और उन्होंने बताया। सुनते ही लगा कि एक मजबूत स्तम्भ भरभराकर गिर गया। मन अशांत हो गया। बस यही विचार बार-बार आ रहा था कि काश! यह सब बुरा सपना होता। काश! कोई आकर कह देता कि दिलीप भईया ठीक हो गये हैं लेकिन ऐसा नहीं हो सका। दिलीप भईया को भूल पाना अब शायद इस जीवन में सम्भव नहीं है। उनकी आसामायिक मौत पर सहानुभूति व्यक्त करने जाने वाला हर सख्श प्रकृति के इस निर्दयी निर्णय को कोस रहा है लेकिन वह कर ही क्या सकता है? क्योंकि ‘हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ’। सोमवार को दिलीप सिंह का अंतिम संस्कार डलमऊ गंगा घाट पर किया गया। इस दौरान एसएलसी दिनेष प्रताप सिंह, एएसपी शषि शेखर सिंह सहित भारी संख्या में पत्रकार, नेता, समाजसेवी मौजूद रहे। दिलीप सिंह के करीबी रहे रामेन्द्र सिंह और राजू राठौर ने गहरा शोक व्यक्त किया है। रामेन्द्र सिंह ने कहा कि जीवन संघर्षों के युद्ध में विजय पा लेने के बाद इस तरह जिंदगी की जंग हार जाना दुखदाई है। राजू राठौर ने ‘जाने चले जाते हैं कहां दुनिया से जाने वाले…जाने चलेकृकहकर रो पड़े।