रायबरेली। मानवता के महान उपासक संत गाडगे के 63वें निर्वाण दिवस पर संत गाडगे सेवक कमलेश चौधरी के नेतृव में साथियों ने संत गाडगे चौक पर एकत्र होकर भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें मानवता के मूर्तिमान आदर्श के रूप में निरूपित कर उनके कार्यों को याद किया। संत गाडगे सेवक कमलेश चौधरी ने कहा कि संत गाडगे बाबा सच्चे निष्काम कर्मयोगी थे। महाराष्ट्र के कोने-कोने में अनेक धर्मशालाएं, गौशालाएं, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों का उन्होंने निर्माण कराया। यह उन्होंने भीख मांग-मांगकर बनावाया किंतु अपने सारे जीवन में इस महापुरुष ने अपने लिए एक कुटिया तक नहीं बनवाई। धर्मशालाओं के बरामदे या आसपास के किसी वृक्ष के नीचे ही अपनी सारी जिंदगी बिता दी। उन्होंने कहा कि गाडगे बाबा के जीवन का एकमात्र ध्येय लोकसेवा था। दीन-दुखियों तथा उपेक्षितों की सेवा को ही वे ईश्वर भक्ति मानते थे। धार्मिक आडंबरों का उन्होंने प्रखर विरोध किया। उनका विश्वास था कि ईश्वर न तो तीर्थ स्थानों में है और न मंदिरों में व न मूर्तियों में। दरिद्र नारायण के रूप में ईश्वर मानव समाज में विद्यमान है। मनुष्य को चाहिए कि वह इस भगवान को पहचाने और उसकी तन-मन-धन से सेवा करें। समाजसेवी कमलेश चौधरी ने इस दौरान लड्डू का प्रसाद भी बांटा।