जल परीक्षण प्रयोगशाला सिर्फ नाम के लिए निर्मित
रायबरेली। मिल एरिया थाना क्षेत्र के आईटीआई सुल्तानपुर रोड हाइवे सारधा नहर की ढाल के पास बनी जल परीक्षण प्रयोगशाला सिर्फ कूड़े का अड्डा व गंदगी का अंबार बन रह गया है जहाँ कर्मचारियों की मौजूदगी का कोई समय निर्धारित नही है अपनी मर्जी के मुताबिक आते है और अपनी मर्ज़ी के मुताबिक जाते है। उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को समय से अपने कार्यालय दफ्तर पहुंचने की एक सख्त हिदायत दी थी पर वह हिदायत शायद ताक पर धरी की धरी रह गई यह नियम कानून कि जिस तरह से धज्जियां उड़ाई जा रही है या उड़ाई गई है यह सरकार के मुंह पर तमाचा है कहने को तो यह जल परीक्षण प्रयोगशाला है लेकिन इसका हाल इतना बेहाल है की बताते चलें एक प्राचीन कहावत है: गुरू कीजै जानकर, पानी पीजै छानकर यानि आप जो पानी पी रहे हैं, उसकी जांच पड़ताल कर लें कि वह पीने योग्य है भी या नहीं। वरना यही बीमारियों का कारण बनते हैं।
यह वैज्ञानिक रूप से सत्यापित तथ्य है कि 80 प्रतिशत बीमारियां प्रदूषित पेयजल के प्रयोग से होती हैं। इसी के मद्देनजर जल निगम द्वारा जनता को उपलब्ध कराए जा रहे पेयजल की गुणवत्ता की जल निगम कार्यालय में एक प्रयोगशाला में जांच की जाती है। आपके आसपास नलकूप, नगर पालिका की सप्लाई, हैंडपंप, सबमर्सिबल आदि से मिलने वाला पानी पीने योग्य है या नहीं अथवा उसमें कौन से तत्व मानक के अनुरूप नहीं हैं, इसकी जांच कराने के लिए उस पानी का सैंपल लेकर इस प्रयोगशाला में जमा किया जा सकता है। यहां से तीन दिन में पानी गुणवत्ता की जांच की रिपोर्ट प्राप्त हो जाती है। इसके लिए मात्र 350 रुपये जांच शुल्क लगता है। यह शुल्क वहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के सामने कुछ भी नहीं, पर यहाँ के कर्मचारियों की अपनी फीस अलग है जो आये लोगो से 1100से 1200 तक वसूला जाता हैं। जहां पर मौजूद कर्मचारियों का रवैया इतना खराब है कि कभी 11:00 बजे कभी 12:00 बजे आते हैं और सिर्फ फॉर्मेलिटी के लिए आ जाते हैं ना कोई सफाई पर ध्यान देता है ना कोई किसी चीज पर ध्यान देता है जब जानकारी की गई तो वहां के एक निवासी ने बताया कि साहब का कोई समय नहीं है आने का पहले बड़े वाले ऑफिस जाते हैं वहां से चाय पानी कर के फिर यहां आते हैं जबकि इस जल परीक्षण प्रयोगशाला में
यहां जांच संबंधी ऐसे उपकरण भी मौजूद हैं जिनसे आवश्यकता पड़ने पर ग्रामीण क्षेत्र में मौके पर जाकर भी पेयजल की जांच की जाती है। बरसात में सैंपल अपेक्षाकृत अधिक संख्या में आते हैं और ज्यादातर सैंपल ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं। जिनको इतनी रकम सुना दी जाती है वह दोबारा वापस नहीं आते। आखिर सरकार के एस प्रयोगशाला का दुरुपयोग क्यों जब इलाके में ऐसी सुविधा उपलब्ध है तो ग्रामीणों तक इन सुविधाओं का क्यों नहीं पहुंचाया जाता है आपके इलाके में लगातार पानी सही न आ रहा हो या आपके क्षेत्र के लोग अक्सर बीमार रहते हों तो वहां के पानी की भी जांच कराई जानी चाहिए।
जनपद का पेयजल मानकों के अनुरूप ही है, यहां का पानी आसपास के जिलों की अपेक्षा ज्यादा मीठा माना जाता है। हालांकि कई जगहों पर फ्लोराइड 70 से 75 परसेंट देखा गया है और कहीं कहीं पर तो इतना गंदा और खराब पानी आता है कि पीने में हिचक होती है लेकिन मर्दाना क्या करता आदमी को पीना ही पड़ता है जब ऐसी सुविधाएं नारा रात हूं तो आदमी क्या करेगा आखिर कब होगी इन लापरवाह अधिकारी कर्मचारियों पर कार्यवाही जहां सरकार जनता को लेकर उच्च व्यवस्थाएं देने का रागआ लापती है।
अनुज मौर्य/शिवा मौर्य रिपोर्ट