जिनको नहीं है अपनी जिन्दगी से प्यार तो वो बैठ ले रायबरेली डिपो की बस में और उनकी मनोकामना हो सकती है पूरी

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रायबरेेेली। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम यात्रियों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहा है। सड़कों पर सरकारी बसों के नाम पर मौत दौड़ाई जा रही है। जी हां चौकिये नही यह सही है और यह हाकिकत कही और की नही बल्कि रायबरेली डिपो में देखने को मिल रही है। खटारा बसों को जिसमे न तो बैठने के लिए सीट है न ही चालको के पास स्टेरिंग के बगल में बोनट यही नही किसी किसी बसों में स्टेयरिंग भी फेल है। ये यात्रियों की सुविधाओं के लिए बसे नही है बल्कि उनको मौत की दहलीज तक पहुचने के लिए यमराज रूपी बसे है जो यमराज का काम कर रही है। पर जिम्मेदार आला हाकिम को इससे कोई फर्क नही पड़ता। यात्रियों कि जाने जाए या चालक परिचालक की इनकी बला से इनको तो एयर कंडीशनर रूम से निकलने की फुर्सत ही नही है। ये बसे अगर सड़क पर दौड़ गई तो लोगो की जिंदगी जाना तय है पर रायबरेली के फोरमैन आरपी सिंह की हीलाहवाली के चलते इनको सड़को पर दौड़ाने का फरमान जारी किया गया है।

पहले धक्का लगाओ फिर आगे बढ़ो……

रायबरेली डिपो की बसों में अगर आपको सफर करना है तो पहले आप इन बसों में धक्का लगाइये। ये तस्वीरें खुद बया कर रही है कि ये बसे बिना धक्का लगाए नही चलाई जा सकती। अगर सड़क पर चलाना है तो पहले यात्री उसमे धक्का लगाए।

चालक परिचालक के साथ साथ यात्री भी रहते है सदमे में….

रायबरेली डिपो के चालको ने तो खुद कबूल किया कि ये बसे नही यमराज है जो कब यात्रियों को ऊपर पहुचा दे पता नही । अधिकारियों को भी पता है ये बसे सड़को पर चलने लायक नही है पर उनको इनकम से मतलब है लोगो की जिंदगी जाए उनकी बला से। वही यात्रियों का साफ कहना है कि ये बसे सड़क पर चल ही नही सकती पर जबरन चलवाई जा रही है इन बसों में कोई सुविधा ही नही है। पहले धक्का लगाइये फिर आगे बढिये।

एआरएम साहब सो रहे कुम्भकर्ण की नींद………

रायबरेली डिपो की कमान जब से नए आये हुए एआरएम के हाथों में सौंपी गई तब से व्यवस्थाओं के नाम पर यात्रियों को बाबा जी का ठुल्लू मिल रहा है। एआरएम का फरमान उनके ही अधीनस्थ अधिकारी व कर्मचारी नही मानते है क्योकि एआरएम का तालमेल ही अपने कर्मचारियों के साथ नही रहता। सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगर वर्कशॉप से बसे सड़क पर दौड़ानी है तो पहले उसे फोरमैन द्वारा चेक करवाया जाता है पर रायबरेली डिपो में ऐसा सिर्फ कागजों पर ही किया जाता है। अब देखने वाली बात यह होगी कि ऐसे लापरवाहों व गैरजिम्मेदाराना कारनामा करने वाले अधिकारियों पर कार्यवाही का चाबुक कब चलता है।

अनुज मौर्य रिपोर्ट

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