- सहीराम
केरल की यह बाढ़, यह तबाही, यह कोई प्रकृति का प्रकोप नहीं है जनाब! और यह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की क्या बात कर रहे हो आप! प्रकृति कोई सड़क चलती कन्या थोड़े ही है कि किसी ने उसे छेड़ दिया और वह नाराज हो गयी। हालांकि बेचारी कन्याएं ऐसे कहां नाराज हो पाती हैं कि रणचंडी बनकर ऐसे फुकरों पर कम से कम सेंडिल ही चला दें। यह जो बाढ़ है न, यह कोई प्रकृति की नाराजगी-वाराजगी नहीं है। यह कोई उसका शाप नहीं है। प्रकृति कौन-सी देवी है जो शाप देगी। वह क्यों कुपित होगी, बताइए! पर्यावरण का संतुलन बिगडऩे की क्या बात कर रहे हैं जनाब आप। यह किसी नेता का मानसिक संतुलन थोड़े ही है कि बिगड़ जाएगा। और यह क्या ग्लोबल वार्मिंग! ग्लोबल वार्मिंग! क्या लगा रखा है आपने सब बकवास है! और यह क्या बात हुई कि ऐसी आपदा की पूर्व सूचना की हमारी तकनीक ही कमजोर है। अतिवृष्टि की कोई सूचना नहीं थी, बाढ़ की कोई चेतावनी नहीं थी। देखो, तकनीक में हमें कमजोर मत बताना जनाब!इस मामले में अमेरिका की सिलिकोन वैली तक में हमारे झंडे लहराते हैं। देखिए जनाब इन बातों में कुछ नहीं रखा। असली बात वह है जो गुरुमूर्तिजी ने कही है। वे संघ विचारक हैं और अब तो रिजर्व बैंक में उनकी नौकरी भी लग गयी है, इसलिए उनकी बात पत्थर की लकीर है क्योंकि मक्खन पर लकीर तो कोई भी खींच सकता है, पर पत्थर पर लकीर सिर्फ संघ वाले ही खींच सकते हैं। तो जनाब, गुरुमूर्तिजी ने कहा है कि सबरीमाला में जिस तरह से महिलाओं के प्रवेश को लेकर माहौल बनाया जा रहा है, संभवत: देवता उससे नाराज हैं। बल्कि उन्होंने तो सुप्रीमकोर्ट को भी आगाह कर दिया कि फैसला देते समय इस बात का ध्यान रखें कि कहीं यह आपदा इस केस से ही तो नहीं जुड़ी है। अब यह कोई किसी दलित दूल्हे के घोड़ी चढऩे या किसी दलित के मूंछ रखने का मामला तो है नहीं कि उससे गांव के सवर्ण नाराज हो जाएंगे। यह आरक्षण का मामला तो है नहीं कि इसको दिया तो वह नाराज हो जाएगा। वैसे भी देवी-देवता कोई खाप के पंच तो हैं नहीं कि कोई लड़की इश्क कर बैठे तो वे नाराज हो जाएं। ऐसे तो कल को हो सकता है कि तीन तलाक के मामले में फरिश्ते नाराज हो जाएं और यह भी एक बड़ी आपदा की वजह बन जाए। बल्कि एलजीबीटी के अधिकारों की बात पर तो फरिश्ते मिलकर नाराज हो सकते हैं और भारी गुस्सा बरपा सकते हैं। खैर, अभी देवी-देवताओं की नाराजगी की बात छोड़ो। अभी तो आपसी प्रेम-मोहब्बत और मेल-मिलाप की ही बात करो। इस आपदा से उबरने के लिए अभी तो यही सबसे जरूरी है।