फैक्ट्रियों का धुआं जिले मे खतरनाक, जिम्मेदार मौन

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फैक्ट्रियों की चिमनियां मानक स्तर से नीचे होने की वजह से आसपास के लोग हो रहे बीमार

रायबरेली। मिल एरिया क्षेत्र में बनी फैक्ट्रियों की चिमनियां दे रही मौत को दावत जिले में प्रदूषण बोर्ड होने के बावजूद भी जिम्मेदार केवल कार्यालय तक ही सीमित रह गए है
हर नियमों की हो रही अनदेखी! जिले में मौजूद राइस मिल और अन्य फैक्ट्रियों की चिमनियां मानक स्तर से नीचे होने की वजह से हवा में जहर घोल रही हैं हानिकारक गैस से कई तरह की बीमारियां फैल रही है। पर अफसोस शासन-प्रशासन द्वारा इन फैक्ट्रियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पा रही है। हालांकि इसकी एक वजह एक यह भी है कि यहां प्रदूषण का दफ्तर इस तरह से मौन है शहर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में 100 से अधिक राइस मिलें व फैक्ट्रियां संचालित हैं, इसके अलावा कुछ आइल मिल और चिमनी ईंट भट्ठियां भी हैं। सिर्फ सक्ती शहर में ही 30 के करीब राइस मिलें चालू हालत में हैं। प्रदूषण बोर्ड के तय मापदंड से नीचे लगी चिमनियों से रोजाना बड़ी मात्रा में काला जहर निकलता है। फैक्ट्रियों की मनमानी रोकने की कोई कोशिश होती नहीं दिखती। इसके अलावा राइस मिलों का राख और भूसा भी आंखों में घुसकर समस्याएं पैदा कर रहा है। इससे भविष्य में अंधेपन की नौबत आ जाती है। डाक्टरों का कहना है कि राइस मिलों से निकलने वाले राख और अन्य फैक्ट्रियों के धूल के कण आंखों के लिए खतरनाक हैं। आंख में राखड़ और धूल जाने के कारण व्यक्ति आंखों को रगड़ता है। इससे कार्निया का अल्सर उत्पन्न हो जाता है। इसका समय पर इलाज नहीं कराया गया, तो आंखों की रोशनी भी जा सकती है। काले धुंए के कण वातावरण में विद्यमान होने के कारण आंखों में जलन, पुतलियां का मटमैलापन और कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। यादातर श्वांस संबंधी बीमारियां प्रदूषित धुंओं के कारण ही हो रही हैं। जानकारों ने बताया कि राइस मिलों के धुंए और राखड़ में अधजले कार्बन के कण, भारी धातु के आक्साइड, नाइट्रोजन और जलवाष्प के खतरनाक कण होते हैं। उनका कहना है कि इन रसायनों के कारण जैव विविधता समाप्त हो सकती है, जो
पर्यावरण के लिए बहुत घातक है। खतरनाक बीमारियों से ग्रसित हो रहे लोगजहरीली हवा के कारण श्वांस से संबंधित बीमारियां, आंखों में जलन-चुभन, फेफड़ा से संबंधित बीमारियां, दमा, खांसी और अन्य प्रकार की खतरनाक बीमारियों की भेंट असमय ही लोग चढ़ते जा रहे हैं। मालूम हो कि चांपा शहर में प्रदूषण का स्तर इस कदर बढ़ गया है कि जनवरी महीने में ठंड के कारण धरती से उठने वाले काले धुंए संघनित होकर फिर से धरती पर जमने लगे थे। कई बार वाहनों के कांच, सड़क, घर की छतों पर संघनित धुंए के अवशेष दिखाई पड़े। अवैधानिक रूप से काम चल रहा है। विभागीय दखल अंदाजी नहीं होने की वजह से कार्रवाई शून्य है। जिससे पर्यावरण को नुकसान तो हो ही रहा है, साथ ही आम लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

अनुज मौर्य /शिवा मौर्य रिपोर्ट

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