नसीराबाद (रायबरेली)। बरकत रहमत व मकफिरत का पाक माह रमजान माह में जकात देना वाजिब है, वही पाक माह रमजान में संपन्न अमीर व्यक्ति लोगों द्वारा गरीबों की मदद करना, नमाज पढ़ना, कुरआन पाक पढ़ना व नेकी की राह पर चलने की सीख देता है। रमजान माह को 3 भागों में बांटा गया है, जिसे असरा कहते हैं। पहले रमजान से 10 रमजान बरकत का दिन हैं, 11 रमजान से 20 रमजान रहमत का दिन है व 21 रमजान से 30 रमजान मक फिरत का दिन है। इस माह में बरकत की बारिश होती है, यानी इस माह में अल्लाह की रहमत का साया रहता है। इस माह में गुनाहों की माफी भी होती है। इस माह की 21 वांं 23वां 25वां 27वां व 29वां रमजान शबे कद्र की रात होती है। इन दिनों रात्रि को जागकर कुरआन शरीफ की तिलावत व इबादत कर इन रातों में मांगी गई है हर जाए दुआएं अल्लाह कुबूल फरमाता है। तीसरे आसरा मे ही अर्थात विश्वा रोजा चांद दिखने तक अल्लाह के वास्ते मस्जिद में रहकर इबादत किया जाता है। बिना रोजा रखे इत्तेफाक पूरा न होगा इन दिनों मस्जिद में रहे, वहीं खाए पिए, वहीं सोये, मस्जिद में रहकर कुरआन शरीफ की तिलावत हदीस की करात व दरूद शरीफ पढ़ने इमली दिन का दर्स व तदरीस करे रमजान माह के अलावा भी कुछ रोजा नफिल रखी जाती है। आसूरा यानी 10वीं मुहर्रम का रोजा नवी मुहर्रम का रोजा जिसे रसूल अल्लाह खुद रखते थे। वह दूसरों को रोजा रखने का हुक्म दिया, फरमाया की। असुरा का रोजा 1 वर्ष के गुनाह मिटा देता हैं। इस माह में फितरा जहां फर्ज है वही जकात नाजिल है साढे सात तोला सोना या दो किलोग्राम चांदी या इसके मूल के धन का मालिक होने पर जगह वाजिब होता है इसमें मूलधन का 25% गरीबों में देना वाजिब है, बरकत रहमत व मकफिरत का पाक माह रमजान में जकातदेना वाजिब है, रमजान माह में रोजेदारों की इफ्तार कराना पानी पिलाना वाजिब है, रोजा रखना हर मुस्लिम पर वाजिब है।
किसी कारणवश यदि रोजा छूट जाए तो ईद के बाद रोजा रखकर इसे पूरा किया जा सकता है। नसीराबाद ईदगाह के शाही इमाम मौलाना अब्दुल रशीद उर्फ फाखरी का कहना है कि रमजान रहमत बरकत व मक फिरत का महीना है इसमें रोजा के साथ साथ ज्यादा से ज्यादा अल्लाह की इबादत करें व नेकी करें। रोजा इंसान को इस तरह पाक साफ करता है कि जैसे सोना आग से पिघला कर और चमकीला हो जाता है। रोजा की अहमियत को जानकर उनका पालन करने से जीवन के साथ साथ आखिरत भी सुधर जाता है।।
अनुज मौर्य/मुस्तकीम अहमद रिपोर्ट