मातम दहशगर्दी के खिलाफ एक मिशन है: मौलाना काजमी
रायबरेली। कर्बला के शहीदों की याद में विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी अंजुमन गुलदस्तये जैनुल एबा कदीम, गढ़ी वजीरगंज की जानिब से जुलूस व शब्बेदारी का आयोजन शनिवार की रात किया गया। वजीरगंज स्थित मस्जिद साहेबुल अस्र में सबसे पहले अजमेर से तशरीफ लाये मौलाना जनाब गुलजार हुसैन जाफरी ने मजलिस को खिताब करते हुये कहा कि कर्बला के जुल्म के बाद जब ये लुटा हुआ काफिला कैद होकर दरबारे यजीद में पहुंचा जहां यजीद के सात सौ कुर्सीनशीन दरबार में बैठे थे। यहां इमाम हुसैन की बहन जनाबे जैनब ने अपने वालिद हजरत अली के लहजे में खुतबा (सम्बोधन) दिया जिससे यजीद के द्वारा दीन की शक्ल में झूठ का जो नकाब डाल दिया था उसे जनाबे जैनब ने बेनकाब कर दिया और साबित कर दिया कि जालिम कौन है और मजलूम कौन?
मौलाना ने कहा कि कैदखाने मे जनाबे जैनब ने पहली मजलिस कायम की और शोहदाये कर्बला को पुरसा दिया यही मातम आज हुसैनियत और इंसानियत की पहचान है, जो भी हुसैनी हैं वो हुसैनी रास्ते पर चल कर हर जुल्म का जवाब देता चला आ रहा है ये मातम दहशतगर्दी के खिलाफ एक तहरीक (आंदोलन) है। बाद मजलिस मस्जिद से जुलूस बरामद होकर दरबारे जैनब पहुंचा। दस्ता ए जैनुल एबा के मीसम नकवी ने पढ़ा- ‘सदियो से जमाने को सदा देता है, मातम सोई हुयी कौमों को जगा देता है’। मातम अजादारों फतेहपुर से आयी अंजुमन अब्बासिया के फैजान ने पढ़ा-‘जो दरे अब्बास तक अपनी तमन्ना ले गया, ये ना पूछो अपने दामन में वो क्या-क्या ले गया’। इनके अलावां सुल्तानपुर की अंजुमन पंजतनी, अंजुमन रौनके अजा बाराबंकी के मातमदारों ने खिराजे अकीदत पेश की।