रायबरेली-जिले के सभी सरकारी एवं गैर सरकारी प्राइमरी व मध्य विद्यालय खुल गए हैं। सरकारी और निजी विद्यालयों में बच्चों की अच्छी संख्या रही। लेकिन, बच्चों की सुरक्षा को लिए सरकार की ओर से जारी कोविड-19 गाइडलाइन का पालन कई सरकारी स्कूलों में नहीं हो रहा है।कोरोना महामारी के कारण करीब चार माह बाद पचास फीसद बच्चों की उपस्थिति के साथ स्कूल तो खुल गए लेकिन, महामारी से बचाव की प्रतिबद्धता की डोर इतनी कमजोर है कि कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है। एक ओर निजी स्कूलों में थर्मल स्कैनर से जांच करने के बाद ही बच्चों व शिक्षकों को प्रवेश दिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में हैंड वाश भी नहीं है। सैनिटाइजर भी उपलब्ध नहीं है। एक तरफ संक्रमण से बचाव को लेकर टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। दूसरी तरफ संक्रमण को लेकर विभाग गाडइलाइन का पालन करने की अपील कर रही है। आलम यह है कि शहर के अधिकांश सरकारी विद्यालयों के कक्षा एक से आठ तक के अधिकांश बच्चे बगैर मास्क में देखे जा रहे हैं। बच्चों के बीच शारीरिक दूरी का पालन कराने में भी विद्यालय प्रशासन उदासीन नजर आ रहा है। विद्यालय परिसर को सैनिटाइज नहीं कराया जा रहा है। सैनिटाइजर सिर्फ शिक्षक-शिक्षिकाओं तक सिमटकर रह गया है। कोरोना महामारी के करीब चार माह बाद सरकार ने कई मापदंड तय करते हुए स्कूल खोलने की अनुमति दी है। इनमें बड़ा नियम यही था कि बच्चे मास्क पहनकर रखेंगे और शिक्षक शारीरिक दूरी का ध्यान रखेंगे। इसके अलावा साफ-सफाई का भी विशेष ध्यान रखा जाएगा। लेकिन स्कूलों में इसके उलट ही हालात हैं। कंचन टुडे की टीम ने सरकारी व निजी स्कूलों में जाकर वहां के हालात देखी। सामने यह आया कि ज्यादातर स्कूलों में कोरोना गाइडलाइन का उल्लंघन हो रहा है। कक्षाओं में तो शारीरिक दूरी का भी पालन नहीं हो रहा है। बच्चे बिना मास्क ही स्कूल पहुंचकर पढ़ रहे हैं। अधिकांश विद्यालयों में थर्मल स्क्रीनिग की कोई व्यवस्था नहीं है। शहर के कई प्राथमिक विद्यालय में कक्षा एक से पांच तक के अधिकांश बच्चे बगैर मास्क में नजर आ रहे थे। विद्यालय परिसर नियमित रूप से सैनिटाइज नहीं हो रहा है। वहीं भारत के कई राज्यो में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए एक बार फिर से सरकार ने स्कूलों को बंद करने के आदेश जारी कर दिया है तो वही रायबरेली जिले के शिक्षा विभाग के अधिकारी केवल कुम्भकर्णी नींद सो रहे है ।
अनुज मौर्य रिपोर्ट