आखिर मोक्षदा एकादशी का क्या है मतलब

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आज दिन शुक्रवार को मोक्षदा एकादशी है।आपको बताते चले धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे नृप श्रेष्ठ मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है उसे मोक्षदा एकादशी कहते हैं। जिसके श्रवण मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
राजन उस दिन यत्न पूर्वक तुलसी की मंजरी तथा धूप, दीप, नैवेद्य से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए ।मोक्षदा एकादशी बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है।
उस दिन रात में मेरी प्रसन्नता के लिए नृत्य गीत और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए ।जिसके पितर पाप बस नीच योनि में पड़े हो वह इसका पुण्य प्रदान करने में मोक्ष को प्राप्त होते हैं ,इसमें तनिक भी संदेह नहीं है ।
पूर्व काल की बात है वैष्णवो से विभूषित परम रमणीय चंपक नगर में वैखानस नामक राजा रहते थे। अपनी प्रजा का पुत्र की भाँति पालन करते थे ।इस प्रकार राज करते हुए राजा ने एक दिन स्वप्न में देखा के उनके पिता नरक में पड़े हुए हैं। उन सब को इस अवस्था में देखकर राजा के मन में बड़ा विश्मय में हुआ और प्रातः काल ब्राह्मणों से उन्होंने स्वप्न का सारा हाल सुनाया। राजा ने कहा मैंने अपने पितरों को नरक में पड़ा देखा है ,बारंबार रोते हुए कह रहे हैं तुम हमारे तनुज हो। इसलिए इस नरक -समुद्र से हम लोगों का उद्धार करो। इस रूप में मुझे पितरों के दर्शन हुए ।वह तप और वह योग जिससे मेरे पूर्वज तत्काल नर्क से छुटकारा पाया जाए बताने की कृपा करें ।
ब्राह्मण बोले राजन यहां से निकट पर्वत मुनि का आश्रम है।वह भूत और भविष्य के ज्ञाता भी हैं ,आप उन्हीं के पास चले जाइए। ब्राह्मणों की बात सुनकर महाराज वैखानस शीघ्र ही उनके आश्रम पर गए वहां उन्होंने श्रेष्ठ पर्वत मुनि को देखकर उन्होंने दंडवत प्रणाम करके उनके चरण स्पर्श किया ।मुनि ने राजा से राज्य के सात अंगों की कुशल क्षेम पूछी, राजा बोले आपकी कृपा से मेरे राज्य के सातो अंग सकुशल हैं, किंतु मैंने सपने में देखा है मेरे पितर नरक में हैं। कृपया आप बताएं कि उनका नरक से छुटकारा कैसे होगा। राजा की बात सुनकर मुनि एक मुहूर्त तक ध्यान में रहे।
इसके बाद राजा से बोले महाराज मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में मोक्षदा एकादशी होती है। सब लोग उसका व्रत करो और उसका पुण्य पितरों को दान कर दो उसके प्रभाव से उनका उद्धार हो जाएगा।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं उनकी बात सुनकर राजा घर लौट आए और उत्तम मार्गशीर्ष मास में राजा वैखानस मुनिे के कथना नुसार मोक्षदा एकादशी का व्रत करके उसका समस्त पुण्य मित्रों सहित पिता को दे दिया। पुण्य देते ही क्षण भर में आकाश से पुष्प वर्षा होने लगी।
वैखानस के पिता पितरों सहित स्वर्ग लोक को चले गए, और उन्होंने कहा बेटा तुम्हारा कल्याण हो ।जो इस प्रकार कल्याणमयी मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और मरने के बाद वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। उसको बाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । मोक्षदा एकादशी मनुष्यों के लिए चिंतामणि के समान कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। इसके महात्मय के पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।

अवनीश कुमार मिश्रा रिपोर्ट

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