एक्सक्लूसिव रिपोर्ट : कसमें सात जन्मों की और साथ सौ दिन का भी नहीं!

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वर्ष 2018 में आए पति-पत्नी के विवाद के 1772 मामले, 1314 मामलों में हुआ सुलह-समझौता
रायबरेली। कसमें सात जन्म तक साथ निभाने की, लेकिन सौ दिन भी साथ नहीं चल रह हैं कदम। अहम और शक..शादीशुदा रिश्तों में दरार की बड़ी वजह बन रहा है। ऐसा लगता है कि भागदौड़ भरी जिंदगी में युवा दंपति एक दूसरे को समझने का वक्त देने को ही तैयार नहीं है। पति पत्नी में अलगाव के मामले बढ़ रह हैं। बात बेडरूम से निकल कर सीधे सड़क और थाने तक पहुंच रही है। परिवार परामर्श केंद्र और महिला थाने में वर्ष 2018 में कुल 1772 मामले पति और पत्नी के विवाद को लेकर आए। इनमें 1125 मामले वह थे जो सीधे महिला थाने में पति या पत्नी द्वारा लाए गए और 647 मामले विभिन्न अधिकारियों की चैखट से महिला थाने निस्तारण के लिए भेजे गए। परिवार बिखरने से बचाने की महिला थानाध्यक्ष ने पूरी कोशिश की। इसमें वह सफल हुई और करीब 1314 मामलों में सुलह-समझौता करा दिया गया। हालांकि इनमें अधिकतर मामले ऐसे थे जिनकी शादी की मियाद तीन से छह माह की थी, मामला तो दहेज उत्पीड़न में दर्ज कराया गया था, लेकिन काउंसलिंग के दौरान आपसी समझ में कमी की बातें उभरकर सामने आई। किसी ने अपने पति पर शादी के पूर्व संबंधों को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया है तो किसी को संवेदनाओं का ख्याल न रखने की शिकायत है। इनमें से कामकाजी व पढ़े लिखे परिवार ज्यादा है। इनमें से कई परिवारों का समाज में रसूख भी है। ज्यादातर परिजनों को पति-पत्नी के बीच की बात तो पता नहीं हैं। बेटे व बहू की जरा सी नासमझी ने इज्जत को तार-तार रखा है। कुल मामलों में अभी 317 मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं। जबकि 131 मामले झूठे पाए गए जिनमें षिकायतकर्ताओं ने अपनी शिकायत वापस ले ली और कोई कार्यवाही करवाने से इंकार कर दिया। महिला थानाध्यक्ष संतोष सिंह ने कहा कि कामकाजी युगलों में आॅफिस में काम करने वाले साथी से नजदीकियों की बातें सामने आती है। हालांकि ज्यादातर मामलों में इस तरह की बातें गलत होती हैं, लेकिन ईगो के चलते दोनों अपने स्टैंड पर कायम रहते हैं। कुछ मामलों में पारिवारिक लोगों की ज्यादा दखलंदाजी भी बड़ा कारण बनी है।

अनुज मौर्य की रिपोर्ट

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