कोरोना संकट का दौर चल रहा है. आज बापू भी होते तो कॉस्ट कटिंग पर ही जोड़ देते..
खुलकर कहते- जरा सी बात बताने के लिए तीन तीन बंदरों की क्या जरूरत? एक ही से काम चलाओ- ” थ्री इन वन..”
बापू की इस मंशा का अनुमान कर हम एक ही बंदर से अपनी बात कह रहे हैं.. सुनो ना सुनो आपकी मर्जी!बापू के 100 साल बाद मुंह-आंख-कान बंद रखने का दौर गया..
अब जरूरी है-
1.आंख हमेशा बंटा ऐसी बाए रहो, पता नहीं कौन गड्ढे में धकेल दे..
2.कान हमेशा खड़े रखो, पता नहीं कब-कौन काम लगा दे?
3.जहां भी गलत देखो या गलत सुनो मुंह से खोखिया पड़ो..अब “डर के आगे जीत है” का जमाना गया.. डरा के रखो.. तो जीत हमेशा बनी ही रहेगी. कब तक हार-जीत की बाजी खेलें.. यह भी कोई बात है..गौरव अवस्थी की कलम से