अमृतसर जंक्शन के पास जिस तरह धड़धड़ाती हुई आई एक ट्रेन दशहरे के मौके पर रावण दहन देख रहे लोगों को कुचलती चली गई, वह वाकया दिल दहला देने वाला तो है ही, एक आधुनिक समाज के रूप में हमारे रवैये पर कुछ गंभीर सवाल भी खड़े करता है। हताहतों की बड़ी संख्या बताती है कि दुर्घटना से पहले पटरी पर कैसी भीड़ जमा होगी। रावण के पुतले को आग के हवाले किया जा चुका था। दर्शक पटाखों की आवाजों के बीच जलते पुतलों को देखते हुए अपने समाज की बुराइयों को भी भस्म होते देखने का रोमांच महसूस कर रहे होंगे। उनमें से ज्यादातर अपने मोबाइल फोन पर इन पलों को कैद करने में लगे थे। ऐसे में पटरी पर आती ट्रेन की आवाज उन्हें बिल्कुल सुनाई नहीं दी। आपदा का अहसास तब हुआ, जब कहर उन पर टूट चुका था। रेलवे की तरफ से तो नहीं, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से मुआवजे की रस्मी घोषणा हो चुकी है। मगर दुर्घटना क्यों हुई और इसका दोहराव कैसे रोका जाए, इस पर सार्थक बातचीत की कहीं उम्मीद भी नहीं की जा रही। हर संबंधित पक्ष हाथ झाड़कर किनारे खड़ा है। आयोजकों का कहना है कि आयोजन कोई पहली बार नहीं हुआ है, पिछले बीस वर्षों से हर साल उस जगह पर रावण दहन होता आया है। उस दिन भी वे पूरी सावधानी बरत रहे थे। पुतले की आग भभकी तो लोगों को आसपास से हटाया गया ताकि उनमें से कोई चिनगारियों की चपेट में न आ जाए। अब लोग आयोजन स्थल से दूर पटरियों पर चले जाएं और वहां ट्रेन उन्हें कुचल दे तो इसमें वे क्या कर सकते हैं। रेलवे का कहना है कि उसे कार्यक्रम की कोई सूचना नहीं दी गई थी। गिरफ्तार ड्राइवर ने कहा कि उसे ग्रीन सिगनल मिला। घटनास्थल से कुछ पहले पटरियां मुड़ रही थीं तो आगे खड़ी भीड़ देखना उसके लिए मुमकिन नहीं हुआ। लेकिन ये सारे स्पष्टीकरण अपनी जगह हैं और यह हकीकत अपनी जगह कि सैकड़ों परिवारों को अब अपने लिए कोई नई लय खोजनी होगी। यह सही है कि पटरियां ट्रेनों के गुजरने के लिए होती हैं, वहां भीड़ इक_ा होने का कोई औचित्य नहीं है। लेकिन इस नीति वाक्य को इस सत्य के साथ जोड़कर पढ़ा जाना चाहिए कि यह भारतीय समाज है और रेलवे हो या कोई और चीज, उसे अगर यहां के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन से काटकर चलाया जाएगा तो वह फायदे से ज्यादा नुकसान ही पहुंचाएगी। पटरियों पर भीड़ जमा है, यह सूचना कुछ खास स्थितियों में ड्राइवर तक पहुंचाने की व्यवस्था इस सूचना क्रांति के दौर में भी क्यों नहीं की जा सकती? शासन तंत्र को अपनी ऊर्जा बयानबाजी में जाया करने के बजाय यह देखने में लगानी चाहिए कि इस कोटि की दुर्घटनाओं को आगे किस तरह टाला या कम जानलेवा बनाया जा सकता है।