बछरावां (रायबरेली)। दीपावली के त्यौहार को लेकर कुम्हार गांव में मिट्टी के दीपक बनाने की तैयारी में लग जाते हैं। क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में कुम्हार परिवार दीपक बनाने में पूरा जुटते हैं। राजा मऊ, नीम टीकर, रामपुर सुदौली, दोस्तपुर पस्तोर, बिशुनपुर सहित दर्जनों गांव में कुम्हार बिरादरी के लोग जीवन यापन करते हैं। पहले तहसील प्रशासन द्वारा कुम्हार बिरादरी को प्रोत्साहित करने के लिए भूमि के पट्टे किए जाते थे लेकिन
वर्तमान समय में पट्टे न होने के चलते कुम्हार बिरादरी को मिट्टी के बर्तन बनाने में भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। ज्यादातर कारीगर यह व्यवसाय छोडक़र मेहनत मजदूरी के काम में लग चुके हैं। अभी कुछ गांवों में दीपक, कुल्हड़, गमले सहित कई प्रकार के मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं लेकिन तकनीक के युग में गमले के व्यवसाय में भी कुम्हार बिरादरी काफी पीछे जा चुकी है क्योंकि व्यवसायीकरण में सीमेंट के बने गमलों का प्रयोग ज्यादा हो रहा है। चाइनीज की झालरों ने भी कुम्हारों के व्यवसाय पर काफी फर्क डाला है। दीपावली आते ही कस्बे की बाजारों में मिट्टी के दीपक बिकने का काम शुरू हो जाता है। जगह-जगह मिट्टी के दीयों की दुकानें सजने लगती हैं। इस संबंध में जागेश्वर कुम्हार ने बताया कि पूर्वजों द्वारा दीपावली के अवसरों पर गांव में दीपों का वितरण करने के लिए पूर्वज घर-घर जाते थे जिसमें काफी धन इकट्ठा होता था लेकिन वर्तमान समय में मिट्टी के अभाव के चलते घर पर ही थोड़ा बहुत व्यवसाय किया जा रहा है। पुरानी परंपरा को जीवित रखने के लिए काफी जद्दोजहद के बाद दीपक बनाए जाते हैं। जोकि घर से ही ग्रामीणों द्वारा खरीद कर दीपावली में प्रयोग किए जाते हैं।