शायद बच्चों का भविष्य भी हो गया है ऑनलाइन
जगतपुर, रायबरेली। वैश्विक कोविड महामारी में जहां अभिभावकों की जेब पर महंगाई ने रीड़ तोड़कर रख दिया है। वही ये बच्चे अभिभावकों के साथ रोजी- रोजगारी कमाने में कुछ इस तरह से मदद कर रहे हैं कि शाम की रोटी का इंतजाम हो जाए और चूल्हा जल जाए। और ये निकल पड़े पिता का हाथ बटाने। देखने वालों की आंखें नम हो गई क्योंकि अभी कुछ समय पहले की बात है जब अभिभावक बच्चों को सुबह तैयार करके बैग टांग के ड्रेस पहनाकर पढ़ने के लिए स्कूलों में छोड़ते थे। आज की तस्वीर यह है कि ऑनलाइन पढ़ाई सिर्फ ऑनलाइन ही रह गई है। अभिभावकों के पास महंगे मोबाइल खरीदने के पैसे हैं नही उसे उपयोग करने के लिए बच्चों के लिए समय भी नहीं। अगर किसी परिवार में एंड्रॉयड फोन है भी तो वह भाई बहन और अभिभावक के पास रहता है बच्चे उसकी हद से दूर ही रहते हैं। हां यह बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि विद्यालय में नियुक्त शिक्षक विभाग को ऑनलाइन शिक्षा की जानकारी जरूर भेजते हैं कि व्हाट्सएप ग्रुप में आंकड़ों सहित बच्चों को जोड़कर रखा है। बाकी ग्रुप में पढ़ाई कौन करता है। अभिभावकों की शिकायत तो यहां तक है कि पढ़ाई के बहाने बच्चे मोबाइल ले लेते हैं और इसमें गेम खेलते हैं जिससे बच्चों में मानसिक असंतुलन की स्थिति हो गई है। वहीं पब्लिक स्कूलों का हाल यह है कि ब्याज सहित फीस वसूलने में लगे जिससे अभिभावकों को टीसी लेने के लिए भी अच्छी खासी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि कोरोना काल में प्रमोटेड क्लासेज की फीस अगर जोड़ते हैं तो लगभग 40000 से 50000 हो जाती है जो अभिभावक देने में पूरी तरह से असमर्थ है।
अनुज मौर्य/मनीष श्रीवास्तव रिपोर्ट