- भरत झुनझुनवाला
बाबा साहेब अंबेडकर मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी औरंगाबाद के एक प्रोफेसर ने युवाओं की दुरूह परिस्थिति का वर्णन किया है। उन्होंने बताया कि उच्च शिक्षा जैसे एमए कर लेने के बाद युवाओं के सामने सभी दरवाजे बंद दिखते हैं। कम्पीटीशन की परीक्षाओं में प्रतियोगियों की इतनी अधिक संख्या होती है कि उसमें से कुछ ही आगे बढ़ पाते हैं। सरकारी नौकरियां इतनी संकुचित होती जा रही हैं वहां भी प्रवेश मिलना कठिन हो गया है। प्राइवेट सेक्टर में भी वर्तमान में रोजगार कम ही बन रहे हैं। उद्योग करना भी कठिन हो गया है क्योंकि बाजार में पैसा ही नहीं है। वापस गांव भी जाना असम्भव हो जाता है क्योंकि कृषि में कठिन श्रम करने की आदत अब छूट चुकी है। ऐसी परिस्थिति में पढ़े-लिखे युवा अपराध की दिशा पकड़ते हैं जैसे एटीएम को तोड़कर नकदी चोरी करना इत्यादि। इस परिस्थिति का मूल कारण तकनीक है। मैन्यूफैक्चरिंग में अब तक कॉफी रोजगार बन रहे थे। जैसे कपड़ा बुनने अथवा कपड़ों की सिलाई में भारी संख्या में रोजगार बन रहे थे। अब यह कार्य भी उत्तरोत्तर रोबोटों द्वारा किये जाने लगे हैं। ऐसी फैक्टरियां बनी हैं, जिसमें एक भी श्रमिक को रोजगार नहीं मिलता। कच्चे माल को मशीन में डालना, मशीन में उसका माल बनाना, उसे मशीन से निकालकर पैकिंग करना और स्टोर में डालना सब रोबोटों द्वारा किया जा रहा है। अमेरिका में एक कम्पनी ने ऐसा रेस्टोरेंट बनाया है, जिसमें एक भी श्रमिक काम नहीं करता। आप मशीन को ऑर्डर करते हैं कि बर्गर वेजिटेरियन होगा, उसमें चीज रहेगी इत्यादि। आपके ऑर्डर के अनुसार मशीन बर्गर बनाकर आपके सामने पेश कर देगी। रोजगार हनन का यह क्रम अब सेवाओं में भी पैठ बनाने लगा है। आज ऐसे कंप्यूटर सॉफ्टवेयर हैं जो कि रिसर्च अथवा ट्रांसलेशन कर सकते हैं। यदि आपको किसी कोर्ट में कोई वाद डालना है तो आप सॉफ्टवेयर में अपनी जरूरतों को एंटर कर सकते हैं। उसके बाद सॉफ्टवेयर रिसर्च करके आपको बतायेगा कि सुप्रीमकोर्ट इत्यादि के कौन से निर्णय आपके लिए लाभप्रद हैं। वकीलों का रिसर्च करने का रोजगार भी खत्म हो रहा है। इसी प्रकार एक भाषा से दूसरी भाषा में ट्रांसलेशन करने का काम भी उत्तरोत्तर सॉफ्टवेयर द्वारा ही किया जाने लगा है। कृषि में पहले ही ट्रैक्टर और ट्यूबवेल से खेती होने से श्रमिकों की जरूरत कम पडऩे लगी है। इस प्रकार मैन्यूफैक्चरिंग, सेवा और कृषि, सभी जगह रोजगार का संकुचन हो रहा है। यह मूल कारण है, जिसके कारण आज के युवा अपने को बेरोजगार पाते हैं। फिर भी कुछ सेवाएं ऐसी हैं जो कंप्यूटर द्वारा नहीं की जा सकतीं जैसे माल की बिक्री करने के सेल्समैन, बीमारों की सेवा करने के लिए नर्स, बच्चों को शिक्षा देने के लिए टीचर, संगीत सिखाने के लिए संगीतज्ञ। इस प्रकार की सेवाएं जो कि मनुष्य द्वारा मनुष्य को सप्लाई की जाती, इन सेवाओं में आगे रोजगार बनने की सम्भावना है। बाकी सभी में रोजगार का संकुचन होगा। इसलिए सरकार को चाहिए कि उन सेवाओं को चिन्हित करे, जिनमें भविष्य में कंप्यूटर तथा सॉफ्टवेयर दिए जाने की सम्भावना कम है और उनके लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर की विशेष ट्रेनिंग की व्यवस्था करे। आज केरल की नर्सें सम्पूर्ण पश्चिम एशिया में कार्य कर रही हैं। हमारे लिए सम्भव होना चाहिए कि देश के बड़ी संख्या में युवाओं को नर्स की ट्रेनिंग दे, जिससे कि ये पूरे विश्व में उत्तरोत्तर अच्छी सेवा दे सकें। इसी प्रकार अफ्रीका में शिक्षा के क्षेत्र में भारी रोजगार उत्पन्न हो रहे हैं। हमें चाहिए कि अपने युवाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की शिक्षक ट्रेनिंग दें, जिससे वे इस प्रकार के रोजगार हासिल कर सकें। बात स्पष्ट कर दें कि माल की ढुलाई करना भी सेवा क्षेत्र में गिना जाता है। आज बड़े ट्रक भी सेवा क्षेत्र में गिने जाते हैं। जिस माल की ढुलाई करने में पूर्व में दस-दस टन के तीन ट्रक लगते थे, आज तीस टन के एक ही ट्रक से वह माल ढुलाई किया जा रहा है। हमें उन विशेष सेवाओं को चिन्हित करना होगा, जिनमें मनुष्य द्वारा ही मनुष्य को सेवा उपलब्ध कराई जाती है। समस्या का दूसरा उपाय यह है कि हम उन तकनीकों को चिन्हित करें, जिनमें भारी मात्रा में रोजगार का हनन हो रहा है और इन तकनीकों पर विशेष टैक्स आरोपित करें। जैसे कृषि में हार्वेस्टर से कटाई के दौरान खेत मजदूरों को होने वाली आय का भारी संकुचन हुआ है। अत: हार्वेस्टर पर भारी टैक्स लगा दिया जाये तो कटाई में खेत मजदूर के रोजगार बढ़ जायेंगे। दक्षिण कोरिया ने उन कम्पनियों पर टैक्स की दर बढ़ा दी है जो कि रोबोट का उपयोग करते हैं। हम भी अपने आयकर एवं जीएसटी के कानून में जिन फैक्टरियों में श्रमिकों की संख्या कम है अथवा रोबोटों का उपयोग किया जा रहा है, उन पर टैक्स की दर को बढ़ा सकते हैं। ऐसा करने से एक साथ दो लाभ होंगे। एक तरफ सरकार को रोबोट टैक्स लगाने से आय मिलेगी तो दूसरी तरफ कम्पनियों के लिए रोबोटों का उपयोग करना कम लाभप्रद हो जायेगा। रोबोटों और कंप्यूटरों द्वारा श्रम का कार्य किया जाना एक सार्थक पक्ष भी है। अभी तक मान्यता थी कि मनुष्य को श्रम करके अपनी जीविका चलानी चाहिए। रोजगार ढूंढना और रोजगार करना मनुष्य की आम जरूरत थी क्योंकि रोजगार से ही आय मिलती थी। लेकिन आने वाली अर्थव्यवस्था में हम हर श्रमिक को रोजगार उपलब्ध नहीं करा पायेंगे। हमें ऐसी व्यवस्था बनानी पड़ेगी कि हम समाज को बिना श्रम के आगे बढ़ा सकें। आज से लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व कार्ल मार्क्स ने ऐसी कल्पना की थी कि मशीनों के उपयोग से उत्पादन इतना बढ़ जायेगा कि नागरिक के लिए रोजगार करना जरूरी नहीं रह जायेगा। उन्होंने सोचा था कि व्यक्ति सुबह मछली मारेगा, दिन में गाय का पालन करेगा और शाम को संगीत सुनेगा। उसके लिए रोजगार करना जरूरी ही नहीं रहेगा क्योंकि सरकार उसे जीविका के लिए पर्याप्त रकम मुफ्त उपलब्ध करा देगी। हमें उस तरफ बढऩा चाहिए। अपने देश में नागरिकों को एक समुचित रकम हर माह उपलब्ध करा देनी चाहिए, जिससे कि वह अपने जीवन की मूल जरूरतों को पूरा कर सके। वर्तमान में जो हम कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च कर रहे हैं, यदि उन सम्पूर्ण योजनाओं को बंद करके उस रकम को देश के नागरिकों में बांट दिया जाये तो हर परिवार को 5 हजार रुपये प्रति माह दिया जा सकता है। तब युवाओं के लिए जरूरी नहीं होगा कि वे एटीएम तोडऩे का कार्य करें। साथ-साथ उन्हें इस दिशा में बढ़ाना चाहिए कि वे उपनिषदों को पढ़ें, संगीत बनाएं अथवा समाज सेवा करें। हमको एक नई अर्थव्यवस्था की कल्पना करनी होगी जहां रोजगार करना केवल उन चुनिंदा लोगों के लिए जरूरी होगा जो विशेष और अधिक ऊंची आय अर्जित करना चाहते हैं। आम नागरिक के लिए रोजगार करना ही जरूरी न रह जाये और उसको अपनी जीविका के लिए पर्याप्त रकम मिल जाए, ऐसी व्यवस्था बनायेंगे तो हम वर्तमान रोजगार के संकट से उबर पायेंगे और युवाओं की ऊर्जा को सुदिशा में लगा सकते हैं।