कोर्ट ने कहा कि 21 दिसम्बर 2016 को तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार द्वारा जारी विज्ञापन के आधार पर की गयी सहायक अध्यापकों की भर्ती उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा (शिक्षक) सेवा नियमावली 1981 के खिलाफ थी.
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिसम्बर 2016 में सहायक अध्यापक के 12460 पदों पर की गयी भर्ती को नियमविरुद्ध करार देते हुए गुरुवार को निरस्त कर दिया. कोर्ट ने एक अन्य फैसले में प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में सहायक अध्यापकों के 68500 खाली पदों के सापेक्ष की गयी भर्ती की भी पूरी प्रक्रिया की सीबीआई जांच के आदेश दे दिये.
न्यायमूर्ति इरशाद अली की पीठ ने सहायक अध्यापकों के 12460 पदों के मामले में दायर कई याचिकाओं का सामूहिक निस्तारण करते हुए यह आदेश दिये. कोर्ट ने कहा कि 21 दिसम्बर 2016 को तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार द्वारा जारी विज्ञापन के आधार पर की गयी सहायक अध्यापकों की भर्ती उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा (शिक्षक) सेवा नियमावली 1981 के खिलाफ थी.
कोर्ट ने सरकार को आदेश दिये हैं कि वह अभ्यर्थियों के चयन के लिये नियमों के अनुरूप नये सिरे से प्रक्रिया शुरू करे. कोर्ट ने इसके लिये राज्य सरकार को तीन माह का समय दिया है.
इसी पीठ ने एक अन्य फैसले में इस साल 23 जनवरी को जारी विज्ञापन के तहत प्राइमरी पाठशालाओं में सहायक अध्यापकों के 68500 पदों पर शुरू की गयी सम्पूर्ण भर्ती प्रक्रिया की सीबीआई जांच के आदेश दिये.
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिये कि इस भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी साबित होने पर दोषी अधिकारियों के खिलाफ सक्षम प्राधिकारियों द्वारा कार्रवाई की जानी चाहिये. कोर्ट सीबीआई को इस मामले में अपनी प्रगति रिपोर्ट 26 नवम्बर को पेश करने के आदेश देने के साथ-साथ मामले की जांच छह महीने में पूरी करने के निर्देश भी दिये हैं.