सोने जैसा स्वभाव है जिसका..

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नेशनल डेस्क

जीवन में जो उम्र कच्ची मानी जाती है, खेलों में वही रिटायरमेंट के लायक. आयु के ऐसे मानकों के कदम-दर-कदम विरोध का आभास कराने वाली लड़की सुधा सिंह ही हो सकती है. नाम कोई दूसरा हो तो भी मान लीजिए सुधा उसके अंदर जरूर पैठी होगी. सुधा सिंह संकल्प का पर्याय हैं. 5 फुट 3 इंच लंबी और 45 किलो वजन वाली सुधा सिंह 42 किलोमीटर दौड़ कर “रिटायरमेंट” योग्य मान ली गई इस उम्र को रोज पछाड़ती है. रेसिंग ट्रेक हो, कच्ची-पक्की सड़क या गलियारा. शहर यह हो या वह.. सुधा के कदम रुकते-थकते नहीं.
रोज इत्ती दौड़ लगाए बिना सुधा बेचैनी महसूसती है. यह बेचैनी ही तो है जो सुधा को आगे-आगे और आगे.. ले जा रही है. छरहरी काया वाली सुधा के नाम 9 नेशनल रिकॉर्ड दर्ज हैं और एशियन गेम्स (2010 और 2018) के गोल्ड-सिल्वर मेडल गले की शोभा. ओलंपिक का टिकट कटने पर सुधा की यात्रा पूरी होने की “गलतफहमी” पालने वाले गलतफहमी में हैं. उम्र के इस पड़ाव पर भी सुधा अपनी मेहनत-लगन से अगला साल 21 से 22 साबित करके ही मानेगी. इसी साल वर्ल्ड चैंपियनशिप और अगले साल कामनवेल्थ गेम्स एशियन गेम्स होने हैं. 2018 में भी तो खेल जगत में ऐसी गलतफहमियां फैलाई गई थी पर सुधा एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीतकर उन गलतफहमियों को पहले ही गलत ठहरा चुकी हैं.

सुधा की यह सारी उपलब्धियां पूरा जग जानता है. जग जो नहीं जानता, चलिए उसे भी जान ले. सिर्फ 34 बरस में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय नाम कमा चुकी सुधा सिंह स्वर्ण पदक विजेता ही नहीं “स्वर्ण स्वभाव” की स्वामिनी भी हैं. कोई आए-कोई बुलाए, सुधा शक्ति खिदमत को तैयार और हर जगह हाजिर बहन की तरह-बेटी की तरह..खास हो या आम सुधा सबकी हैं. अभी हाल में ही सुधा के स्वागत में एक छोटी सी सभा रायबरेली के होटल प्लीजेंट व्यू (सेनानी ग्रुप) में हुई. सुधा के साथ फोटो सेशन से शुरू हुआ. सब सुधा के साथ फोटो खिंचवाने में सब मशगूल और सुधा होटल के वेटरो के साथ फोटो खिंचवाने के लिए फिक्रमंद. होटल के उस कम पढ़े लिखे स्टाफ के लिए भले होंगी कोई सुधा-वुधा! पर सुधा के लिए सब अपने सगे से.

यह किस्सा भी सुन लीजिए! रायबरेली का स्टेडियम सुधा की कामयाबी की आधार भूमि है.जब आती हैं, वहां जरूर जाती हैं. माटी को माथे लगाती हैं. आपके मन में सवाल उठ रहा होगा-यह तो हर कोई करता है तो इसमें नया क्या? सही भी है. माटी और मां का कर्ज आज तक उतार कौन पाया है? साल 2018 था वह. एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीतने के बाद पहली बार रायबरेली आई सुधा सिंह का “नायक” की तरह स्वागत हुआ. गाजे- बाजे के साथ 5 किलोमीटर लंबा रोड शो और जगह-जगह तोरण द्वार पर सुधा का मन रमा था स्टेडियम के उस चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी में जो कभी उन्हें प्रैक्टिस में सहयोग देता था. सुधा ने उसके सार्वजनिक रूप से पैर छुए तो वह खुद आश्चर्यचकित और देखने वाले भी.

अब आप खुद सोचिए! ऐसा कौन करता है? नहीं न! इसीलिए सुधा सुधा हैं. सुधा होना इतना आसान नहीं. सुधा के सोने जैसे चमकने के राज गहरे हैं. स्वभाव में संस्कार ठहरे हैं.. वरना इतनी लंबी रेस (कैरियर के 22 वर्ष ) दौड़ता कौन है? बुलंदियों पर टिकता कौन है? इसीलिए रायबरेली हो या अमेठी, प्रदेश हो या देश, सुधा पर सबको नाज था, है और रहेगा.

अनुज मौर्य /मनीष श्रीवास्तव रिपोर्ट

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