हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी बिक रहा है “जिले में मौत का मांझा” जिला प्रशासन सो रहा कुम्भकरणी नींद

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रायबरेली

दूसरों की पतंग काटने के जुनून से उपजा चीनी मांझा आज ¨जदगी की डोर काट रहा है। चीनी डोर आसानी से नहीं कटती और यही कारण है कि पिछले करीब एक दशक से शहर में इसका इस्तेमाल काफी तेजी से बढ़ा। इसके गंभीर परिणामों को देखते हुए जिला प्रशासन ने इसके इस्तेमाल, बिक्री व भंडारण पर प्रतिबंध लगाया था, बावजूद हर साल इसकी बिक्री होती है और पतंगबाजी में धड़ल्ले से इस्तेमाल भी होता है। पाबंदी के बाद भी सदर मे सब्ज़ी मंडी में व अन्य जगहों पर मौत के मांझे की बिक्री बदस्तूर जारी है। प्रतिबंध और सख्ती ने बस कीमत बढ़ाई प्रतिबंध के कारण ज्यादातर दुकानदार मांझा खुलेआम नहीं बेच रहे हैं, लेकिन डिमांड करने पर चाइनीज मांझा आसानी से मुहैया कराए जा रहे हैं। हालांकि कई दुकानों पर एक सामान्य खरीदार अगर चीनी मांझे की मांग करें तो शायद पहले उसे इन्कार कर दिया जाए लेकिन मोल-भाव करने पर दुकानदार कुछ देर में उपलब्ध करवा देते हैं। पतंग व मांझा बेच रहे एक दुकानदार ने बताया कि चीनी मांझे पर प्रतिबंध को लेकर जैसे-जैसे सख्ती बढ़ती गई, इसकी कीमत भी बढ़ती गई। किलो के भाव से मिलने वाला मांझा जहां पहले करीब 400 रुपये में मिल जाता था वहीं अब इसकी कीमत दोगुनी हो गई। कहीं-कहीं तो 1200 से 1500 रुपये के किलों के करीब मांझा बिक रहा है।

लाखों रुपये का होता है कारोबार

रायबरेली जैसे छोटे शहर में मकर संक्रांति पर होने वाली पतंगबाजी में चीनी मांझे का कारोबार लाखों रुपये का है। यह पूरी तरह से गैर-कानूनी ढंग से लाया जाता है, लिहाजा बिक्री के कोई आंकड़े तो उपलब्ध नहीं लेकिन आसपास के दुकानदारों के अनुसार शहर का एक थोक विक्रेता कम से कम इस सीजन में एक लाख रुपये तक का कारोबार करता है। नाम न छपने की शर्त पर एक दुकानदार ने बताया कि बाजार में अलग-अलग ब्रांड के चीनी मांझा उपलब्ध है। इनमें उनकी गुणवत्ता के अनुसार रेट तय किए गए हैं, जिनमें छोटी चरखी 300 रुपये व छह रील का मांझा 500 रुपये के आसपास का होता है।

मस्ती बन जाती है मुसीबत

प्रतिबंधित मांझे के कारण कई लोगों के साथ पशु-पक्षी भी शिकार हो चुके हैं। सोमवार को शाम के वक्त स्टेडियम में खेल रहे एक खिलाड़ी चाइनीज मांझा का शिकार होते हुए बचे थे, वहीं पुलिस लाइन कॉलोनी में भी एक बच्चे के गले से चाइनीज मांझा उलझ गया था। अब देखना यह होगा क्या प्रशासन चीनी मंझे पर कोई कार्यवाही करती भी हैं या खानापूर्ति तक ही मामला सिमट कर रह जायेगा।
अनुज मौर्य रिपोर्ट

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