पित्र ऋण की अदायगी एवं पितरों को मुक्ति दिलाने का अवसर है पितृपक्ष

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आज समाप्त हुआ पितृ पक्ष

तिलोई (अमेठी) ।हमारी भारतीय वैदिक संस्कृत में पितृपक्ष का बहुत महत्व माना गया है यह पितृपक्ष साल में एक बार अपने पुरखों को याद करने एवं उन्हें पिंडदान के साथ ही श्रद्धा सुमन अर्पित कर उन्हें तृप्ति करके उन्हें मुक्त दिलाने का अवसर देता है। हमारी वैदिक मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान सारे पुरखे गांव के अंदर बाहर आकर घर तालाब नदी कुएं के किनारे खड़े हो जाते हैं।और पूरे पक्ष यानी पखवाड़ा वह अपने वंशजों के कुश के साथ कूल यानी तर्पण पिंडदान देने एवं श्राद्ध करने का इंतजार करते हैं कहते हैं कि जिन पितरों के वंशज पितृ पक्ष में अपने पितरों को तर्पण पानी को लेकर उनकी संतुष्टि के लिए श्राद्ध कर ब्राह्मणों साधु-संतों को भोज कराते हैं उन्हें उनके पिता खूब आशीर्वाद देते हैं। खुशी मनसे पितृ पक्ष के अंत में वापस लौट जाते हैं ।लेकिन जो लोग अपने पुरखों को पिंड पानी तर्पण देकर श्राद्ध नहीं करते हैं। उनके पुरखे एक पखवाड़े इंतजार करने के बाद आखिर में निराश होकर बददुआएं देते हुए वापस लौट जाते हैं। हमारे यहां पितृपक्ष पुरखों का उद्धार यानी मुक्त दिलाने वाला विशेष अवसर माना जाता है। और इसी पक्ष में लोग अपने पुरखों को अपने साथ ले जाकर उन्हें गया भदरसा दिलाने के लिए ब्रह्मचर्य धारण कर सपरमीक या अकेले चारों धाम जाते हैं। मृत्यु के बाद मोक्ष के लिए ही अपने जिंदा रहते बुढ़ापे में सेवा करने और मरने के बाद कंधा देकर पित्र पक्ष में पानी देकर श्राद्ध करने के लिए ही लोग कम से कम एक संतान की कामना ईश्वर से जरूर करते हैं। पितृपक्ष के संबंध में मार्कण्डेय पुराण एवं विष्णु पुराण में विस्तार से उल्लेख किया गया है। पितृपक्ष में कौआ साधु-संतों एवं ब्राह्मणों का विशेष महत्व बताया गया है। और माना जाता है कि यह सभी पितरों के प्रतीक होते हैं। पितृ पक्ष एवं पितृ ऋण के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है। कि भगवान राम ने भी अपनी पत्नी सीता जी के साथ पुष्कर पितृ पक्ष में पिंडदान तर्पण देकर श्राद्ध किया था।और सीता जी को श्राद्ध में आए साधु संतों महात्माओं में अपने ससुर राजा दशरथ दिखाई पड़े थे। हर मनुष्य के पास जीवन में सबसे बड़ा पितृ ऋण होता है। जिसे चुकाना हर व्यक्ति का परम दायित्व होता है ।पितृपक्ष में पितृदोष से भी छुटकारा मिल सकता है। और जब तक पितृ समाप्त नहीं होता तब तक मनुष्य सुखी निरोगी नहीं हो सकता है।पितृ पक्ष में छोटे-बड़े मंझले सभी पुत्रों को ही नहीं बल्कि पुत्रियों को भी श्रद्धा सुमन अर्पित करने पिंडदान कर पानी तर्पण देने एवं श्राद्ध करने की व्यवस्था है। पितृपक्ष में दाढ़ी बाल न बनवा कर ब्रह्मचर्य का पालन करना पितृपक्ष की पवित्रता का प्रतीक है। पितृपक्ष के महत्व का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं। कि पितृपक्ष में पितरों के सामने देवी देवताओं की भी पूजा नहीं होती है। और जो भी पूजा पाठ की जाती है वह पितरों को मिलती है। जब तक पितरों को गया भदरसा एवं चारों धाम ले जाकर उन्हें मुक्त नहीं दिलाई जाती है। तब तक पितृपक्ष में उन्हें पानी देना जरूरी माना जाता है। पितरों के ऋण से मुक्ति पाने के लिए उन्हें चारों धाम ले जाने की तमन्ना हर व्यक्ति के अंदर होती है। लेकिन सबकी तमन्ना पूरी नहीं होती है। और भाग्यशाली होते हैं वही लोग जो पितृ पक्ष में अपने पुरखों को तारने के लिए चारों धाम जा पाते हैं।पितृ पक्ष में जिस तरह श्राद्ध करना जरूरी होता है। उसी तरह चारों धाम जाने के बाद ब्रह्मभोज या भंडारा करना आवश्यक माना गया है। आज के बदलते आधुनिक माहौल में पितृपक्ष का महत्व कम होता जा रहा है। और लोग पितृपक्ष में रोजाना पानी फूल अर्पित करना तो दूर इस दौरान अपने दाढ़ी के बाल भी बनवाना पसंद नहीं करते हैं ।आधुनिकता के दौर में पुरखों का महत्व घटता जा रहा है। जबकि पुरुषों की आत्मा की सृष्टि के लिए पितृपक्ष में उन्हें पानी पानी अक्षत काला तिल के साथ पुष्प अर्पित करके श्राद्ध करके उनका आशीर्वाद लेना हर पुत्र का परम धर्म होता है।

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