क्या मजदूर होना ही हमारी मजबूरी है साहब……..

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उत्तरप्रदेश डेस्क-गोद में मासूम बच्चे और सिर पर परिवार के पालन की जिम्मेदारियों की गठरी। सैकड़ों किलोमीटर पैदल चले तो पांव में भी छाले पड़ गये। माथे पर पसीना और थकावट का दर्द लेकर पैरों में कपड़ा बांध टूटी फूटी चप्पलों के सहारे ऐसे कई मजदूर इन दिनों सलोन से गुजर रहे हैं। कई किलोमीटर दूर से पैदल चलकर आ रहे इन लोगों का मकसद सिर्फ एक है कैसे भी हो, अपनी जन्म भूमि पहुँचना है।दिल्ली,मुम्बई,मध्य प्रदेश,राजस्थान सहित कई राज्यों से गरीब और दिहाड़ी मजदूरों का पैदल पलायन जारी है। श्रमिक दिन रात सैकड़ों किलोमीटर तक पैदल चलने को मजबूर हैं।ऐसे लोगो को कोरोना से ज्यादा लॉक डाउन का डर सता रहा है।ना जेब मे पैसे है ना उनके पास पानी है न ही कुछ खाने को लेकिन जिद्द है सिर्फ घर पहुचने की।इसमें बच्चे और महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। वो कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं।बुधवार और गुरुवार को सैकड़ो श्रमिको का पैदल काफिला सलोन बाईपास जानकीपुरम से होते अपने गन्तव्य को जाते हुए दिखाई दिए।ज्यादतर मुम्बई और दिल्ली के प्रवासी मजदूर है।जो फैक्ट्रियों में तालाबन्दी ली वजह से घर वापसी कर रहे है।ये सभी रायबरेली और प्रतापगढ़ जनपद के श्रमिक है।इन श्रमिको के बीवी बच्चे गठरी लिए भूखे प्यासे अपनी मंजिल तक चलते जा रहे है।हालांकि जिला पुलिस और मीडिया कर्मी राह चलते श्रमिको के खाने पीने की व्यवस्था कर उनके गन्तव्य तक छुड़वाने की व्यवस्था कर रहे है।

अनुज मौर्य /प्रदीप गुप्ता रिपोर्ट

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